उक्त जानकारी संस्था सचिव बिकास कुमार ने दी. उन्होंने बताया कि 18 अगस्त 2008 को बाँध टूटने पर जब कोशी की उच्छृंखल धारा प्रलयकारी रुप धारण कर विनाशलीला शुरू की तब त्रासदी की गूँज पटना से दिल्ली तक को दहला दिया. तुरंत केन्द्र सरकार ने हवाई सर्वेक्षण किया, विनाश की विकरालता देख सरकार ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया.
कहा कि सैकड़ों वर्ष पहले इस होकर कोशी बहती थी. इस बीच तटबंध के निर्माण ने लोगों के मन से बाढ़ के पानी का भय मिटा दिया था. इस कारण लोगों ने इस बड़े भूभाग में अपना सुव्यवस्थित बसेरा बना लिया था लेकिन मानवीय भूल के कारण पुनः कोशी तीव्रतर वेग से अपने पूर्व मार्ग पर चल पड़ी और रास्ते में पड़ने वाले घर, गांव, नगर बस्तीयों को मिटाते चली. इससे उठने वाले करूण चीत्कार विभिन्न प्रचार तंत्रों के जरिये राज्य, राष्ट्र से होते हुए दिगंत में फ़ैल गया. मानवता जीवंत और सक्रिय हो उठी. चारों तरफ से पीड़ितो के लिए सहायता आयी लेकिन आये हुए धन एवं केन्द्रीय राशि अपने वाजिव स्वरूप में पीड़ित जन तक पहुंच नहीं पायी. यह कार्यक्रम उसी की सफलता हेतु एक जागरण है.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए समाजसेवी और साहित्यकार डॉ भूपेंद्र नारायण मधेपुरी ने कहा कि कुसहा त्रासदी माननीय विकास यात्रा का एक काला अध्याय है. तटबंध की समुचित देखभाल होती तो ये त्रासदी न होती. इसे 15 साल हो जाने के बावजूद लगभग 50 प्रतिशत पीड़ित परिवार को मुआवजा नहीं मिली है. हम सब सरकार से पीड़ितो के पुनर्वास की मांग करते हैं. समाजशास्त्री डॉ आलोक कुमार ने कहा कि इस त्रासदी ने इलाके के बहुसंख्य आबादी की हैसियत को बदल दी. जो खुशहाल थे उसे बदहाल बना दिया. समाजसेवी शिवनारायण साह ने कहा कि आज उस दिन को याद कर आँखों में आंसू आ जाते हैं. इसमें आदमियों के साथ मवेशियों का भी हालत बहुत खराब था.
संस्था अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश ओम ने कहा कि कुसहा त्रासदी कोशी वासियों के लिए एक दुखद स्मृति है लेकिन यहां के लोगों ने जिस सहजता और तीव्रता से अपने को सम्हाल कर क्षेत्र में पुनर जीवन बहाल किया यह उनके अदम्य जिजीविषा को दर्शाता है. मौके पर संस्था के सदस्य सत्यम कुमार, सौरभ कुमार सुमन, आनंद कुमार मुन्ना, ललित कुमार माधव आदि उपस्थित थे.
(नि. सं.)
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