जिला मुख्यालय के पूर्णियां गोला रोड में गैरेज चलाने वाले मूक बधिर भाइयों आदि पर दबंगों के कहर का गवाह बनने के आरोप मधेपुरा अंचल के अंचलाधिकारी, सदर थानाध्यक्ष समेत कई अन्य समाज के रक्षक पुलिस पदाधिकारियों पर लगे. मामले में पीड़ित पक्ष उच्चाधिकारियों तक गुहार लगते रहे, पर वर्तमान समय में न्याय का रेट कितना ऊँचा है, ये बात सबको पता है. दबंगों ने अंचल और पुलिस अधिकारियों के सामने ही विवादित जगह अपनी दीवार खड़ी कर दी और पीड़ितों को धक्का-मुक्की कर भगा दिया था. दबंगों ने ट्रैक्टर और अपने लोगों की मदद से विवादित जमीन में रखे वाहनों को भी ठेल-ठाल कर हटा दिया. हाल में ही गंभीर ऑपरेशन के लौटे एक पीड़ित अशोक सिंह से साथ भी दुर्व्यवहार किया गया. घटना विगत 17 जनवरी की है. घटना के समय सैंकड़ों लोग मूकदर्शक बने थे. आखिर वर्दी और प्रशासन के सामने कुछ बोलने की हिम्मत किसे है. जबकि उक्त जमीन से सम्बंधित मामला मधेपुरा जिला न्यायाधीश के न्यायालय में लंबित है. तत्काल कहावत साबित हुई, ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’.
पुलिस का भी कहना था कि जमीन पर काम नहीं करने का भी तो कोर्ट का आदेश नहीं है. पीड़ित का कहना था कि काम करने का आदेश भी तो नहीं है और जब मामला कोर्ट में है तो फिर शान्ति व्यवस्था बहाल करने की जवाबदेही तो प्रशासन की है. पर यहाँ अंचलाधिकारी और पुलिस एकतरफा नजर आ रही थी.
एक पीड़ित बंटी सिंह ने बताया कि हाल में जब आईजी मधेपुरा आये थे तो उन्होंने सारी बात उनके सामने रखी थी और नए डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय के आने बाद उन्हें न्याय की आस जगी थी. आखिर मामले में उच्चाधिकारी ने संज्ञान लिया और महतो जी सस्पेंड हो गए. आम लोगों ने राहत की सांस ली है. पीड़ित को चाहिए कि अंचलाधिकारी की विवादस्पद भूमिका से भी सक्षम उच्चाधिकारी को अवगत कराये. कानून का कुछ लोगों की रखैल बनना सभ्य समाज के लिए घातक है.
(वि. सं.)
उजड़ा महतो जी का दलान: ऐसे थानाध्यक्ष और ऐसी नकारी पुलिस का क्या काम?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 02, 2019
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