|वि० सं०|11 अगस्त 2013|
कहते हैं अधिकाँश मनुष्य के पास जब धन की अधिकता हो
जाती है तो वे अपना ध्यान थोडा-बहुत अय्यासी में भी देना मुनासिब समझते हैं.
मधेपुरा से हाल में स्थानान्तरित एक अधिकारी ने पिछले साल थियेटर बाला के साथ चंद
लम्हे गुजारने की ख्वाहिश प्रकट की तो अधिकारी के एक ‘करीबी’ ने मधेपुरा में ही एक सुरक्षित
जगह पर अधिकारी महोदय को एक कमसिन ‘बाला’ उपलब्ध करा दी.
चंद
लम्हे तो हसीन हुए पर इस दौरान चार आँखों के बीच में दीवार बने चश्मे को अधिकारी महोदय
ने उतार कर जो बगल में रखा तो फिर होश कहाँ. जाते वक्त चश्मा ‘प्लॉट’ पर ही भूल कर चले गए. पर घंटों
बाद मदहोशी से बाहर आने पर जब चश्मे की जरूरत पड़ी तो याद आया कि चश्मा तो नर्तकी
के पास ही भूल आये.
खैर
चश्मा तो फिर श्रीमान के पास पहुँच गया, पर अधिकारी की हडबड़ी पर ‘करीबी’ मुस्कुराए बिना न रह सके. अब भी
मधेपुरा में जब भी साहब की चर्चा होती है तो जानने वाले लोग उनके ‘चश्मा प्रकरण’ की भी चर्चा किये बिना नहीं रह
पाते.
हुस्न के दीदार में नर्तकी के पास छूटा अधिकारी का चश्मा
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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August 11, 2013
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