कामकाजी महिलाओं पर राष्ट्रीय महिला आयोग के द्वारा
कराये गए एक सर्वेक्षण में बेहद चौंकाने वाली बात सामने आई है. सर्वेक्षण की
रिपोर्ट के मुताबिक़ दस में से चार महिलायें कम से कम दो बार यौन उत्पीडन का शिकार
हुई हैं. कार्यस्थल पर आपत्तिजनक एवं भद्दे मजाक से जहाँ कई महिलाओं ने आत्महत्या
का भी प्रयास किया है वहीँ लगभग सारी महिलायें पुरुष सहकर्मी पर भरोसा कर नहीं
चलती.
यौन
उत्पीडन रोकने के लिए देश में माननीय उच्चतम न्यायालय ने विशाखा मामले में जारी
गाइडलाइंस को लागू करने का निर्देश दिया था ताकि कामकाजी महिलाओं के व्यक्तिगत जीवन और उनकी कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े.
गाइडलाइंस को लागू करने का निर्देश दिया था ताकि कामकाजी महिलाओं के व्यक्तिगत जीवन और उनकी कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े.
क्या है विशाखा गाइडलाइंस: वर्ष 1997 में सुप्रीम
कोर्ट ऑफ इण्डिया ने विशाखा व अन्य बनाम राजस्थान व अन्य (JT 1997 (7) SC 384) के मामले में माना था कि यौन
उत्पीडन के अंतर्गत सीधा या परोक्ष रूप से निम्न यौन व्यवहार हो सकते हैं:
- शारीरिक सम्बन्ध या प्रयास
- यौन सम्बन्धी लाभ की मांग या अनुरोध
- यौन सम्बंधित टिप्पणी
- अश्लील तस्वीर या वीडियो दिखाना तथा
- यौन प्रकृति का कोई भी शारीरिक, शाब्दिक या सांकेतिक व्यवहार
माननीय न्यायालय ने इस सम्बन्ध में महिलाओं को
शिकायत करने और नियोक्ताओं के लिए दिशानिर्देश भी जारी किये हैं ताकि इन पर अंकुश
लगाई जा सके. यही नहीं विशाखा दिशानिर्देश के
तहत अब हर संस्था के लिए महिला
उत्पीडन से सम्बंधित शिकायत समिति का गठन भी अनिवार्य होगा और इसकी रिपोर्ट भी
सरकार को भेजनी होगी.
तहत अब हर संस्था के लिए महिला
उत्पीडन से सम्बंधित शिकायत समिति का गठन भी अनिवार्य होगा और इसकी रिपोर्ट भी
सरकार को भेजनी होगी.
पर इतने
के बावजूद कार्यस्थलों पर यौन उत्पीडन का नहीं रूकना यह भी दर्शाता है कि नियमों
को और भी सख्त करने की आवश्यकता है और महिलाओं को भी इस मामले में कुछ ज्यादा ही
जागरूक होने की जरूरत है.
मधेपुरा की स्थिति:
मधेपुरा में भी कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीडन की घटनाएं आम हैं. जिला
मुख्यालय में भले ही ये थोड़ा कम हो पर प्रखंडों के कार्यालयों में स्थिति विषाक्त
है. खासकर उदाकिशुनगंज प्रखंड के आलमनगर, चौसा, पुरैनी आदि प्रखंडों में काम करने
वाली अधिकाँश महिलायें अब छोटे-छोटे यौन उत्पीडन के मामलों पर अभ्यस्त सी होती जा
रही हैं, क्योंकि इनकी शिकायतों पर अधिकारी भी इतना ही कहकर टाल जाते हैं कि उसको
समझा देंगे, अब से ऐसा नहीं बोले और उत्पीडन को अंजाम देने वालों के हौसले बढते चले जाते हैं.
दस में चार महिलायें उत्पीडन की शिकार: मधेपुरा की स्थिति भी नाजुक
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 10, 2013
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