कुंभकरणों को जगाएं नहीं, सोने दें वरना औरों का जीना हो जाएगा हराम

रोशनी के आवाहन के लिए जागरण का होना जरूरी है और इसके लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिएं लेकिन जागरण का काल वही होना चाहिए जब रोशनी आने या पाने का समय हो अन्यथा अंधेरों के आगमन काल में जागरण का अर्थ है हमारे अपने लिए और समाज के लिए समस्याओं को आमंत्रित करना।
जागरण की आवश्यकता आज सभी जगहों पर है। कहीं लोक जागरण जरूरी है, कहीं समाज या समुदाय का जागरण और कहीं देश जागरण। कई मुद्दे ऎसे हैं जिन पर पूरी दुनिया को जगाने की जरूरत है।
जागरण शब्द ही ऎसा है जो आँचलिकता से लेकर वैश्वीकरण की सारी सीमाओं के पार भी अपना वजूद रखता है और इसलिए जागरण का महत्त्व भी है तथा इसका प्रभाव भी। यह जागरण व्यष्टि से लेकर समष्टि तक के लिए जरूरी पहलू है जिसके बगैर न हम जाग सकते हैं, न औरों को जगा सकते हैंं।
जागरण की वेला को वे लोग अच्छी तरह भाँपने में माहिर होते हैं जिनमें मनुष्यता का अंश विद्यमान होता है अथवा जिन्हें अपने मनुष्य होने का भान है। काफी संख्या में लोग ऎसे हैं जिन्हें न जागरण से मतलब है और न औरों को जागृत देखने या करने से।
ऎसे खूब सारे लोग हमारे आस-पास तथा अपने क्षेत्र में होते हैं जिनके लिए जागरण का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक कि इनके आगे परोसने के लिए हमारे पास कुछ न हो। अर्वाचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत तक की बात करें तो हम देखते हैं कि हर युग में कुंभकर्णों का वजूद रहा है। कभी कुंभकर्ण सिर्फ एक होता था और बदनाम था। आज कुंभकरण हजारों-लाखों लोगों में बँटा हुआ है और वह सोया हुआ ही है फिर भी उसकी खूब प्रतिष्ठा है।
जागरण के लिए हमेशा पात्र लोगों को देखें तथा उन्हें जागृत करें तो समाज तथा देश की बहुत बड़ी सेवा हो सकती है। उन लोगों को जगाने का कोई अर्थ नहीं है जिनमें मानवीय मूल्यों और संस्कारों की कमी है तथा जिनका प्रत्येक कर्म स्वार्थ और घृणित मानसिकताओं से भरा हुआ है।
ऎसे लोग जब तक सुप्तावस्था में रहेंगे, तब तक हम सभी चैन से जी पाएंग और सुख का अनुभव करते रहेंगे। जागृत होने पर समाज और देश के लिए जीने मरने का माद्दा रखने वाले लोगों को जगाया जाना हमारी प्राथमिकताओं में होना चाहिए तभी हमारे जागरण अभियानों और आन्दोलनों का महत्त्व है वरना उन लोगों को जगा देने का कोई फायदा नहीं है जो लोग जाग जाने पर भूख और प्यास से भरे हुए अच्छे लोगाें और समाज को खाने दौड़ते हैं और समाज में विषमताएं और समस्याएं पैदा करते हैं।
ऎसे लोगों के जागृत होने से तो इन्हें लोरियाँ गाकर सुलाए रखना ही ज्यादा श्रेयस्कर है। आज कई किस्मों के कुंभकर्ण हमारे सामने हैं जिन्हें परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि उन सभी की वृत्तियाँ एक जैसी ही हैं और इनकी मौजूदगी मात्र ही सामाजिक विकास और आर्थिक उत्थान के तमाम समीकरणों को बिगाड़ रही है।
इनके लिए इनका अपना घर और कुटुम्ब वाले ही समाज और देश है तथा ये जो कुछ करते हैं वह अपने लिए ही करते हैं, अपने स्वार्थ ही पूरे करते हैं। इन्हें न देश की पड़ी है, न समाज की। इनके लिए न आत्मीयता का कोई अर्थ है, न किन्हीं प्रकार के रिश्तों का, और न ही समाज और देश के लिए अच्छे-बुरे का भान।
अपना घर भरने वाले इन कुंभकरणों को किसी न किसी रूप में हम हमारे बीच कभी भी पा सकते हैं। इनकी हरकतों की कुंभकरण से तुलना करने लगें तो सारी स्थितियाँ अपने आप सामने आती चली जाती हैं।
कई बार लोग उन्हें जगाने के लिए अपनी शक्ति और सामथ्र्य स्वाहा करने लगते हैं जो जगना चाहते ही नहीं। कई सारे लोग ऎसे हैं जो किसी न किसी इन्द्रधनुष या माया के फेर में दिन-रात रमे रहते हैं। इन लोगों के लिए वही अपना आराध्य होता है जो इन्हें पसंद करता है या इन्हें जिनमें आनंद आता है।
कोई किसी चक्कर में है, कोई किसी के चक्कर में है, तो कोई चक्करों के बीच इतना रम चुका है कि खुद चक्कर घिन्नी बना हुआ है। खूब सारे लोग किसी न किसी में मस्त और व्यस्त हैं। इन सभी के लिए उनका पूरा जीवन सुप्तावस्था के उस दौर से गुजर रहा होता है जिसमें तन्द्रा के साथ अजीब सी खुमारी इनके जीवन की संगिनी बनी हुई होती है।
ऎसे लोगों का अपने-अपने इन्द्रधनुषों में रमे रहना और मोहपाश में बँधे रहना जरूरी है वरना इनका तनिक भी ध्यान भटका नहीं कि जमाने भर के लिए समस्याएं पैदा कर देने का सामथ्र्य इनमें है। असल बात यह है कि ऎसे खुराफातियों को अपने इष्ट कर्मों से दूर कर दिया जाए तो इनका रूख समाज की तरफ हो जाता है और तब ये समाज को ही खाने दौड़ते हैं।
इसलिए मनुष्यता से हीन जो लोग सोये हुए हैं या अपने किसी न किसी मोहजाल में रमे हुए हैं उन्हें दरकिनार करते हुए उन लोगों पर अपनी ऊर्जा खपाएँ जो लोग वाकई जगना और कुछ करना चाहते हैं तथा समाज तथा देश को कुछ दे पाने की स्थिति में अपने आपको पाते हैं।
कुंभकरणों को आराम से सोने दें, उनकी निद्रा में खलल न डालें। जो तन्द्रा में हैं उन्हें भी रमने दें। अपनी शक्ति और सामथ्र्य उन्हीं लोगों के लिए लगाएं जिनके जागरण से समुदाय और राष्ट्र का भला होता हो। क्योंकि योग्यजनों के सोए रहने से पूरे कालखण्ड को खामियाजा भुगतना पड़ता है।
खुद जगें, औरों को जगाएँ तथा जागरण का ऎसा शंखनाद करें कि अंधकार का पलायन होकर जन-मन से लेकर परिवेश तक में रोशनी का शाश्वत सूरज दमकने लगे।


डॉ. दीपक आचार्य (9413306077) dr.deepakaacharya@gmail.com
कुंभकरणों को जगाएं नहीं, सोने दें वरना औरों का जीना हो जाएगा हराम कुंभकरणों को जगाएं नहीं, सोने दें वरना औरों का जीना हो जाएगा हराम Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 17, 2013 Rating: 5

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