![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVIjXXlO4NyeawbELFToPySmlhZs6Gk_VWFCKA55WFwVQ8iVYGPcBsdIiSjxLx-pvR9N6_EiGQTwiOUR_PoKCGLROiE8oPEo4_r4Oc8X3xzn92mBLTklIhfHLQZGNW9jRx1bRA-iVowDtE/s1600/Koshi+Flood+1.jpg)
बाढ़ समाप्त होने के बाद ऐसा लगा था कि धीरे-धीरे सबकुछ पटरी पर आ जाएगी। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। बड़ी आबादी का सहारा आज भी चचरी पुल है। विश्व बैंक की मदद से ग्रामीण सडक़ों का निर्माण करने की घोषणा भी विफल साबित हुई। कोचगामा के मो. अयूब, बलभद्रपुर के मो. लतीफ, परसा के कैशर अली आदि कहते हैं कि त्रासदी के बाद से हमलोग नरक भोग रहे हैं। पता नहीं क्यों इस दिशा में किसी की भी नजर नहीं जा रही है। कुल मिलाकर, कबीर के दो पंक्तियों में सच्चाई बयान की जाए तो-
‘तू कहता कागद की लेखी
मैं कहता आंखिन की देखी।‘
क्या हुआ तेरा वादा ?
'आगे से ऐसी नौबत नहीं आए इसकी हम तैयारी करेंगे और सभी
गांव में सबसे ऊंचा आश्रय स्थल सामुदायिक भवन बनवाएंगे ताकि विपत्ति के समय लोगों को
आश्रय मिल सके।' उक्त वादा तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुसहा टूटने के बाद सुपौल जिले
के उच्च विद्यालय, छातापुर में महती सभा को सम्बोधित करते हुए किया था। दिन था शनिवार का और तिथि
थी 28 फरवरी,
2009। 15
अगस्त, 2007 को भी पटना के गांधी मैदान
में बाढ़ का स्थायी निदान करने की नीतीश ने घोषणा की थी। लेकिन न्याय के साथ विकास
और सुशासन की बात करने वाली बिहार सरकार के वादे अधूरे रहे। कोसीवासियों की जुबान पर
एक ही सवाल है- क्या राजनेता वायदे बिसार देने के लिए करते हैं?
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNbK_rIWZDR0tnEUn8LsRLUgLCTDaXP0BncPYtamZ2T3fqTrEuRJQKrQGi9gbhz5ZjqxUmD_kJbnB9erX6yXCnPRF6NM5yr0HMs7sjKmLnQxjDN8B6OK9E1xPQp3yx543dwvPQzUO1-HrT/s1600/Special+Report.png)
खैर, अपनी भयावहता के कारण राष्ट्रीय आपदा घोषित की गयी कोसी
बाढ़ के बाद बड़े-बड़े वादे किए गए। कुछ वादों पर अमल भी हुआ। लेकिन आज की तारीख में
भी सभी गांवों में आश्रय स्थल का निर्माण नहीं हो सका है। बाढ़ का स्थायी समाधान की
बात ही छोडि़ए। आज भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो अनुदान राशि से वंचित हैं। पूर्व
में नीतीश के लगमा, सहरसा आगमन पर भी क्षेत्रीय विधायक रत्नेश सादा ने अपने सम्बोधन के क्रम में उनका
इस दिशा में ध्यान आकृष्ट किया था। बहरहाल, आज की तारीख में अगर कोसी उग्र हुई
और उसका तटबंध पर आक्रमण हुआ तो फिर यहां के बाशिदें आशियाने की तलाश में इस बार भी
दर-दर की ठोकर खाएंगे। एक बार फिर स्परों के विभिन्न बिन्दुओं पर कोसी खतरे की घंटी
बजा रही है। यहां के लोग दहशत के साए में हैं। सो, सवालों का उठना और मथना वाजिब ही
है। जो भी हो अगर वादों पर अमल हुआ होता तो आज कोसी की तकदीर व तस्वीर अलग रहती। वैसे,
बीरबल की खिचड़ी खाते
और आश्वासनों की घुट्टी पीते अब लोगबाग आजिज आ चुके हैं।
(सुपौल से बबली गोविन्द की रिपोर्ट)
कुसहा कलंक कथा (भाग-3): चचरी पर रेंग रही जिंदगी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 08, 2014
Rating:
![कुसहा कलंक कथा (भाग-3): चचरी पर रेंग रही जिंदगी](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihUOXPl6PY_Zw8lyaGgMIlQmoIHVWvPSeq7iyAxJpuitwWtOpgQ3lN6hRj6myPjKsXSRXfuZl-AAPtpk3UzLlG3sdxyJxMIQ_M499ID88OY3XK2MVUIzKipoyhTGxLesA-ruqsKKqCURzo/s72-c/Koshi+Flood.jpg)
No comments: