
पर दीवाना भी तो नही.
भले वो इल्तजा भी मेरी थी,
और वही जिद भी मेरा था.
...
मैं तुझ पर कुर्बान न सही,
पर बेवफा भी तो नही.
भले ही वो लहू भी मेरा था,
और वही सुर्ख अश्क भी मेरा था.
...

मैं दिल-ए-मुफलिस ही सही,
पर मजबूर भी तो नही.
भले जला वो ठिकाना भी मेरा था,
और लुटी वही दुनिया भी मेरी थी.
...
मैं किसी काबिल न सही,
पर नाकारा भी तो नही.
फिर मिली वो नाकामयाबी भी मेरी थी,
और "मुसाफिर" वही फतह भी मेरा था.
- -सुब्रत गौतम "मुसाफिर"
मेरा ही तो था.....
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 31, 2011
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मैं किसी काबिल न सही,
ReplyDeleteपर नाकारा भी तो नही.... BAHUT KHOOB
मैं आशिक न सही,
ReplyDeleteपर दीवाना भी तो नही.
भले वो इल्तजा भी मेरी थी,
और वही जिद भी मेरा था.
...बहुत ही खुबसूरत.....