‘अपने पैसे का पीता हूँ तेरे बाप का क्या जाता है’

|राजीव रंजन| 09 अप्रैल 2013|
सूबे की बात तो हम नहीं करेंगे, पर मधेपुरा जिला में दौर-ए-दारू चरम पर है. शराब पीना कल्चर तो बनता जा ही रहा है, पर गरीबों और मजदूर वर्गों में शराब का प्रचलन समाज के लिए एक खतरनाक प्रचलन है और ऐसे लोगों से सामजिक मान्यताएं भी तार-तार हो रही हैं.
      जिला मुख्यालय समेत पूरे जिले में शराब पीकर सड़क पर धुत्त पड़े लोग बिहार के विकास की कहानी बयां कर रहे हैं. कहीं-कहीं तो स्थिति इसससे भी भयावह है. आइये दिखाते हैं एक बानगी. जिला मुख्यालय का जयपालपट्टी की एक सड़क. एक शराबी लड़खड़ा कर नाले में जा गिरता है. जाहिर सी बात है नाले में सर डूबा रहता तो इसकी मौत हो ही सकती थी. किसी ने दया कर नाले से खींच कर बगल तो कर दिया पर शराबी के नहीं हिलने-डुलने के कारण आसपास के लोगों को लगा कि शायद ये मर चुका है. पर जब किसी ने जब जोर से कहा कि पुलिस को बुलाओ पकड़ कर फाइन करेगा तो ये होश में आ जाएगा, तो शराबी ने भी नशे में कहा मैं अपने पैसे का पीता हूँ तेरे बाप का क्या जाता है.
      खैर जो भी हो, शराब पीकर सड़क पर नौटंकी करने को सरकार ने अपराध के दायरे में रख दिया सो हमने पुलिस को इसकी सूचना दे दी ताकि सरकार एक टिकट पर दो खेल कर ले. एक बार तो इस शराबी ने कुछ सौ रूपये में शराब खरीद कर सरकार का खजाना मजबूत किया और दूसरी बार हजारों में अर्थदंड देकर खजाने को समृद्ध करेगा.
‘अपने पैसे का पीता हूँ तेरे बाप का क्या जाता है’ ‘अपने पैसे का पीता हूँ तेरे बाप का क्या जाता है’ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 09, 2013 Rating: 5

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