नहीं है रहा कोई सरोकार ।
जाने क्यों जग में इतना
बढ़ गया "ये भ्रष्टाचार" ।
कह कर हमारे भ्रष्ट-जन,
ये है आधुनिक युग की मार ।
है लेते बना ये
फिर किसी को लूटने का आधार ।
बेईमानी है बसी इनके रग-रग में,
शायद है यही वजह
कि इतनी हसीन है
इनकी रातें ।
दिन में ये कहते हैं
कि शराब को ना अपनाना ।
पर रात की बात देखो,
मैखाना हीं है इनका ठिकाना ।
अभिनय ये करते है ऐसे,
जैसे इनका कोई दोष नहीं है ।
दोहराते है ये अपनी गलतियाँ,
पर इन्हें कोई अफ़सोस नहीं है ।
इन्सान के भेष में
है ये किसी हैवान से कम नहीं ।
पर भ्रष्टों के लिए तो
है ये किसी भगवान् से कम नहीं ।
अपने फायदों के लिए
ये दूसरों का खून भी पी सकते हैं ।
बिना इन्सानियत का गला घोटे,
भला ये कैसे जी सकते हैं ।
लंदन, मॉरिशस और
स्विट्ज़रलैंड,
जाने कहाँ-कहाँ जमा है इनके काले धन ।
अपनी बैंक खाताएँ भरने को,
है बेच डाला इन्होंने मानवता का कण-कण ।
अब हमें इन काले-कुकर्मों को
अच्छा सबक सिखाना है ।
इन्सानियत अभी भी
बची है कुछ लोगों में,
ये इन दरिंदों को बताना है ।
मनाना है अब हमें हर दिन-हर पल,
अच्छाई और सच्चाई के त्यौहार को ।
और मिटाना है अपने आप से, इस
जहाँ से,
इन भ्रष्टों और भ्रष्टाचार को ।।
--अमन कुमार, भारत
"ये भ्रष्टाचार"///अमन कुमार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 24, 2012
Rating:
Ye Bhrastachar
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