क्षणिक मोह में राह
भटक जाता है इंसान.
क्षणिक स्वार्थ में तुरंत
बदल जाता है इंसान.
चंद कौड़ी के लोभ में
अपने को गिरा देता है इंसान.
चंद वासना की खातिर
नजर से गिर जाता है इंसान.
अल्प माया के वश में
अल्प भौतिक सुख की खातिर
तौला जाता है इंसान.
क्षणिक विरह की खातिर
हर वेदना सहता है इंसान.
क्षणिक मिलन के मोह में
जिंदगी भर रोता है इंसान.
क्षणभर मादकता के वश में
आ जाता है इंसान.
क्षणभर खुशियों के जाल में
फंस जाता इंसान है.
पल भर दुनियां की नजरों में
गिरकर संभल जाता है इंसान.
पल भर कीई खुशियों में ही
अपना आशियाँ उजाड़ देता है इंसान.
--सुबोध कुमार पासवान, चौसा, मधेपुरा.
इंसान....///सुबोध कुमार पासवान
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 29, 2012
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