रूद्र ना० यादव/०८ जुलाई २०११
कुछ साल पहले तक तो रामेश्वर पंडित के साथ सब कुछ ठीक चल रहा था.दोनों बेटों को बड़े लाड़-प्यार से पाला था कि ये बुढापे की लाठी बनेंगे.घर में पोतों की किलकारी गूंजी तो रामेश्वर को लगा कि जीवन सार्थक हो गया .पर रामेश्वर का मानना है कि बहुओं ने सबके क्या कान भरे कि पल भर में सबकुछ बदल गया.पत्नी तो पहले ही साथ छोड़कर चली गयी,अब बेटों और पोतों की नफरत ने रामेश्वर को दर-दर की ठोकरें खाने को विवश कर दिया है.
मधेपुरा जिला मुख्यालय के पश्चिमी बाय पास में रहने वाले रामेश्वर अब न्याय के लिए एसपी का दरवाजा खटखटा रहें हैं.बेटों और पोतों ने इन्हें मार-मार कर घर से बाहर निकाल दिया है.दरअसल रामेश्वर अब कमाने लायक भी नही रह गए हैं और बगल की ही ५ कट्ठा जमीन भी उनके ऐसे व्यवहार का कारण बन गयी है.रामेश्वर की पत्नी के नाम की ये जमीन बेटे बेच देना चाहते हैं, जबकि रामेश्वर कहते हैं मेरे मरने के बाद तो ये तुम्हारी ही है.नालायक बेटों ने पहले ही सब कुछ बेच दिया है और अब ये बची जमीन भी बेचे देंगे तो उन्हें अपने बच्चों की दुर्गति उनके जीवनकाल में ही देखने को मिलेगी.पिता ऐसा चाहते नहीं है और बच्चे पिता की बात मानते नही हैं.एसपी साहब से मामले को सुलझाने का आश्वासन मिला तो रामेश्वर भावुक होकर रोने लगे.
देखा जाय तो बुढापे में माता-पिता को तकलीफ देने का ये कोई नया मामला नही है.पर जिस माँ-बाप ने बच्चों को खुश देखने के लिए अपना सुख दांव पर लगा दिया हो उनके साथ बच्चों का ऐसा दुर्व्यवहार निश्चित रूप से निंदनीय है.
बेटों ने निकाला घर से, दर-दर की खा रहे हैं ठोकरें
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 08, 2011
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