रूद्र ना० यादव/०८ जुलाई २०११
कुछ साल पहले तक तो रामेश्वर पंडित के साथ सब कुछ ठीक चल रहा था.दोनों बेटों को बड़े लाड़-प्यार से पाला था कि ये बुढापे की लाठी बनेंगे.घर में पोतों की किलकारी गूंजी तो रामेश्वर को लगा कि जीवन सार्थक हो गया .पर रामेश्वर का मानना है कि बहुओं ने सबके क्या कान भरे कि पल भर में सबकुछ बदल गया.पत्नी तो पहले ही साथ छोड़कर चली गयी,अब बेटों और पोतों की नफरत ने रामेश्वर को दर-दर की ठोकरें खाने को विवश कर दिया है.

देखा जाय तो बुढापे में माता-पिता को तकलीफ देने का ये कोई नया मामला नही है.पर जिस माँ-बाप ने बच्चों को खुश देखने के लिए अपना सुख दांव पर लगा दिया हो उनके साथ बच्चों का ऐसा दुर्व्यवहार निश्चित रूप से निंदनीय है.
बेटों ने निकाला घर से, दर-दर की खा रहे हैं ठोकरें
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 08, 2011
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