
जब कोई ओट भी न रहे और हवा चले
तुझसे मिला था जो कभी, तुझको ही सौंप दूँ
दर पर तेरे इसी लिए आँसू गिरा चले
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके परचम-ए- अमनो-वफ़ा चले
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
फिर ज़िंदगी में सिर्फ सज़ा ही सज़ा चले
खंजर लिये खड़े हों अगर मीत हाथ में
कोई हमें बताए वहाँ क्या दुआ चले
जब ख़्वाब रूठ कर गए, 'श्रद्धा' ने ये कहा
अब गुफ़्तगू के दौर चले, रतजगा चले
--श्रद्धा जैन, सिंगापुर
कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 19, 2011
Rating:

very nice ...! it's fact of human's life.
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