सुपौल: शिक्षा का सर्वोच्च सम्मान पाकर सरायगढ़ की बेटी ने बढाया कोशी का मान

मंजिले उन्हीं को मिलती है,
 जिनके सपनों में जान होती है,
 पंखों से कुछ नहीं होता
 हौसलों से उडान होती है.
उक्त पंक्तियों को चरितार्थ किया है सुपौल जिले के सरायगढ़ भपटियाही प्रखड के मध्य विद्यालय सरायगढ़ की प्रखंड शिक्षिका बबीता कुमारी ने. बबीता को शिक्षा दिवस के मौके पर पटना के कृष्ण ममोरियल मे आयोजित समारोह में राज्यस्तरीय मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार से नवाजा गया है. राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में उकृष्ट योगदान के लिए बबीता को शिक्षा मत्री वृषिण पटेल द्वारा प्रमाण पत्र के साथ संयुक्त रूप से दो लाख की राशि भी प्रदान किया गया, जिनमें प्रतिभागी मो. गालिब सहायक निदेशक, जन शिक्षा एवं सेवानिवृत शिक्षक दिनेश मेहता शामिल थे.

संघर्षों से भरी रही बबीता की यात्रा तो पुरस्कारों की भी हुई बौछार: तेरह वर्ष में बबीता की शादी और पंद्रह वर्ष में मां बनने बाद बबीता ने मैट्रिक की परीक्षा पास की.  स्कूली जीवन के काल से ही साक्षरता के क्षेत्र में जुड गयी. वर्ष 2005 में जब वह शिक्षिका बनी तब बबीता ने शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोडने का काम किया. इसके लिए उन्हें वर्ष 2009 में मुख्यमंत्री अक्षर आंचल योजना के तहत जिले के बेस्ट अक्षर दूत का पुरस्कार से नवाजा गया. वही उन्हें 29 मार्च 2011 को राज्य स्तर पर आयोजित अक्षर बिहार योजना के तहत सम्मानित किया गया. वर्ष 2011 में मानव संसाधन विकास विभाग बिहार द्वारा प्रकाशित पुस्तक सपनों को लगे पंख में बबीता की जीवन की संधर्ष गाथा को जीवनी के तौर पर अपवाद शीर्षक देकर सहेजा गया. इतना ही नही वे योग शिक्षिका व लेखिका की भी भूमिका निभायी है. वर्ष 2012 में शिक्षा विभाग बिहार सरकार द्वारा बिहार के सौ वर्ष पुरे होने पर शतक के साक्षी नामक पुस्तक का विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों हुआ, जिसमें बबीता द्वारा लिखे लेख मे जिले के तीन बुजुर्गों की जीवनी को शामिल किया गया. इस उल्लेखनीय कार्य के लिए बबीता का नाम बिहार के 20 प्रमुख लेखकीय टीम में शामिल किया गया. इसके लिए उन्हें 10 हजार राशि प्रोत्साहन के रूप में दिया गया.  
                  बबीता कहती है कि यह सम्मान ने उन्हें और भी जिम्मेदारी बढा दी है. कहती है शि़क्षा की मुहिम को गरीब, दलित, शोषित, पीडित व कमजोर वर्गों के उत्थान तक पहुंचाना चाहती हूँ. पुरस्कार की राशि को कोसी से विस्थापित परिवार के शिक्षा से वंचित नौनिहालों को शिक्षा के मुख्य धारा में जोडने में खर्च करना चाहती हूं. सम्मान का श्रेय माता पिता व पति को देती है.                  
सुपौल: शिक्षा का सर्वोच्च सम्मान पाकर सरायगढ़ की बेटी ने बढाया कोशी का मान सुपौल: शिक्षा का सर्वोच्च सम्मान पाकर सरायगढ़ की बेटी ने बढाया कोशी का मान Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 13, 2014 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.