कितने आजाद महिलाओं के सपने ! कल -आज -और कल (भाग-2)


 आज  महिलाएं शिक्षित हैं -जागरूक हैं -सपने देखती हैं तो उन्हें  सच करना भी जानती  हैं लेकिन कुछ  मुट्ठी भर  रेत से घरौंदे नहीं बनाये जा सकते,---देश की स्वतंत्रता का सूर्य जब प्रज्वलित हुआ --आशा की किरणें महिलाओं के दामन में भी झिलमिलाई थीं परन्तु उसी आंचल को दागदार बनते देर नहीं लगी,-वे अपने ही परिवेश ,समाज ,घर की सीमाओं में शोषित होती चली गईं -यह मानते हुए भी की -वे माँ हैं -बहन हैं -बेटी हैं--कितने रूपों और रिश्तों में जीती हैं वह -त्याग का  प्रतिरूप  बन करपर उन्ही  रिश्तों ने उसे कलंकित भी किया --यह हमारे आजाद देश की विकृत  मानसिकता का घृणित परिणाम है--दामिनी, गुडिया जैसी मासूमो का बलिदान देश भूला नहीं है -अगर उनके विरोध में कहीं कोई दबी आवाज उभरी भी तो कुछ दिनों तक प्रेस में ,मीडिया और मुट्ठी भर बुद्धिजीवियों के बीच विमर्श का मुद्दा बनी बेटियाँ आंसू बहाने के सिवाय कुछ नहीं कर पातीं. और सरकार कुछ मुआवजा या दोषियों को दो तीन महीनो की सजा दे अपने कर्तव्य से मुक्त हो जाती है. ....और फिर एक नई यातनाकी कहानी का जन्म होता है. आखिर कब तक?..और कितनी बेटियों की बलि चढ़ेगी?क्या हमारा समाज
कभी अपनी सोच बदलेगा?..बेटियाँ जो किसी का अभिमान ,किसी के माथे का तिलक बन गौरव व् साहस का नया इतिहास लिख सकती हैं ,उन्हें प्रताड़नाओं के दौर से कब तक गुजरना पडेगा. उन्हें ईमानदारी ,और दृढ़ संकल्पों के साथ शिक्षित और जागरुक बनाने की ठोस कोशिश क्यों नहीं होती?कितने ही बलिदानों ,संघर्षों ,से प्राप्त आजादी को हमने कुछ सत्ता लोलुपों के हाथ का खिलौना बना दिया  ,--वे देश के भविष्य से खेलते रहे -संविधानो -कानूनों ,न्याय और प्रगति के नाम पर आधी आबादी के  भाग्य का  फैसला सुनाते  रहे ,परदे के पीछे से घिनौना खेल खेलते रहे ---पूरा देश  देखता रह गया --न्याय की लम्बी लड़ाई और दोषियों को सजा दिलाने के लिए सविधान के पृष्ठ खंगाले जाते रहे -- महिलाओं ने  खुद को ठगा सा महसूस किया  लेकिन उन नर पिशाचों  का ह्रदय न पसीजना  था न  पसीजा,- - क्या हम आदिम युग की और बढ़ रहे हैं ?..आजादी मिले वर्षों बीत गए -समय बदला --युग बदले --कामना तो यही की थी मनुष्यता के पक्षधरों से --उनकी सोच .विवेक ,बुद्धि का विकास होगा --मानवता के नये आयाम स्थापित होंगे ..शिक्षा होगी तो अन्तश्चेतना का भी उत्कर्ष होगा ...पर कितना दुःख होता है ये पंक्तियाँ लिखते हुए की परिवर्तनों के दौर से गुजर कर भी ---शिक्षित होते हुए भी हमने क्रूरता -संवेदना और नृशंसता  की सारी  वर्जनाएं --सीमाएं तोड़ दी हैं --महिलाओं के साथ पशुओं जैसा आचरण करने वाले  जरा अपनी भावी पीढ़ी के विषय में भी सोचें --उनका कल क्या होगा ?...उनकी बहू  बेटियां भी यदि इन दुष्कृत्यों का शिकार हुईं तो उनके आंसुओं का वे क्या जवाब देंगे ,,हर महिला माँ है ,बेटी है ,--बस एक बार सोच कर देखें ---हम आवाज उठाते रहे -जुल्म के खिलाफ -नारी अस्मिता के लिए --पर कहाँ  खो हो जाती हैं वे आवाजें ?..सत्ता बहरी है या समाज ?कहाँ जाएँ महिलाएं -बेटियां ,!-क्या एक बार फिर विध्वंशकारी क्रांति की प्रतीक्षा है ,,समाज को ...जब सब कुछ नष्ट भ्रष्ट हो केवल मौन ही शेष  रह जायेगा !..पहले विदेशियों ,अंग्रेजों से संघर्ष था ,,पर आज अपनों से है,--अपनों से- अपनों का यह युद्ध ज्यादा कठिन है ,शक्ति की नियंता रही है नारी. जावन के संघर्षों में आज भी भारतीय नारी ने हार नहीं मानी है. अपनी प्रगति के रास्ते  खुद तलाशे हैं, भारतीय नारी ने सपने भी देखें हैं तो अपने नीद की सुख छाँव में ,अपनों के बीच न की उसे तोड़ कर, विच्छिन्न कर ,वही हमारी संस्कृति की पहचान है. यदि वही पुन्य सलिला नारी हमारे समाज में पद दलित होती है तो यह लज्जाजनक और हमारी संस्कृति का अपमान है. और एक पददलित संस्कृति कभी किसी समाज को विकास का मार्ग नहीं दिखा सकती. हमें अपनी सोच को उदार बनाना होगा.,दहेज़,हत्या, भ्रूण ह्त्या जैसी बुराईयों को जड़ से मिटा कर एक नया आसमान बनाना होगा. जो हमें सुख की छाँह दे सके आज के सामाजिक परिवेश और पुराने ,रुढियों में जकड़े गुलाम मानसिकता वाले चंद मठाधीशों के बीच   की सामाजिक स्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं है, बस संघर्ष के दायरे बदल गए हैं,अब वह घर आँगन से निकल कर विभिन्न क्षेत्रों, महत्वाकांक्षाओं ,बौद्धिक धरातलों तक फ़ैल गया है, चुनौतियां बड़ी हैं ,पीढ़ियों की सोच को बदलने के लिए बहुत कुछ अभी किया जाना ,लिखा जाना बाकी है, प्रयास करते रहना है क़ि हम उनके साथ न्याय कर सकें,..आजादी के वास्तविक अर्थ को समझने की जरूरत है ,,आजादी सबके हित में हो ,समान ,वर्ग,लिंग,ज़ाति  की विभिन्नताओं से परे हो .--लेकिन महिलाओं की आजादी का अर्थ उन्मुक्तता नहीं , बल्कि व्यक्तित्व के विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना हो  तभी वह अपना आसमान खुद बना पायेगी--हम सभी जानते हैं की  जीवन के अरण्य  में नारी शीतल सुखद मलय बयार है जो संघर्षों, मुश्किलों ,पीड़ा व् वेदना के अनगिनत थपेड़े सह कर भी जीती है तो परिवार के लिए ,घर आंगन की मंगल कामना में ही जीवन का सार समझती है --वह कभी अलग नहीं होती अपनी पारिवारिक धुरी से ..पर जब चुनौतियां सामने हों तो वह न हारती है न झुकती है ...पर जब टूटी है तो प्रलय ही आई  है ,,वह ममता है, मान है ,श्रृंगार है ,प्रेम है, क्या क्या न कहें --बस थोडा सा स्नेह दें और अमृत की मिठास जीवन को सुरभित बना जाएगी ,हम नारी के सम्मान की रक्षा करें तभी हमारी विश्व प्रसिद्द संस्कृति जीवित रह पायेगी.


 
पद्मा मिश्रा
LIG 114, रो हॉउस, आदित्यपुर-2, जमशेदपुर-13
कितने आजाद महिलाओं के सपने ! कल -आज -और कल (भाग-2) कितने आजाद महिलाओं के सपने ! कल -आज -और कल (भाग-2) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 23, 2013 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.