वि० सं०/06/01/2013
22 दिन के अस्पताल में संघर्ष के बाद सात साल की
रीना ने आज इस दुनियां को अलविदा कह दिया. मुरलीगंज प्रखंड के जीतापुर की रीना
दरअसल इस सुशासन के सरकार की सच्ची कहानी है. सरकार भले ही दलितों के उत्थान के
हजार दावे करें पर आज एक दलित की बेटी को इस सरकार में मौत मिली है.
जीतापुर
के बोधू पासवान की गरीबी की मार झेल रही बेटी को उसकी दादी ने गत छ: दिसंबर को
अस्पताल में भर्ती तो कराया था पर वह भी छोड़ कर भाग गई थी. संवेदनहीन सदर अस्पताल
मधेपुरा ने खून की कमी और अत्यधिक बीमार रीना को अस्पताल के बाहर फेंक दिया था.
मीडिया के लोगों के पहुँचने पर अस्पताल प्रशासन ने रीना को फिर से भर्ती तो कर
लिया पर उसकी जान नहीं बचा सका.
अस्पताल
प्रशासन का कहना है कि उनलोगों ने भरसक कोशिश की पर वह बच न सकी, पर जानकारों का
मानना है कि सरकार के फंड को लूट कर खाने वाले राज्य के अस्पातल की संवेदना इतनी
मर चुकी है कि उचित इलाज के अभाव में यहाँ लोगों को स्वास्थ्य नहीं बल्कि मिलती है
मौतें.
पर
रीना की मौत एक छोटे से शहर में हुई है और यहाँ की मौतें राष्ट्रीय समाचार नहीं बन
पाती हैं लिहाजा आने वाले समय में प्रशासन की संवेदनहीनता से और भी मौतें होती
रहेंगी और सरकारी अस्पतालों में लूट का खेल भी जारी रहेगा.
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Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 06, 2013
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