|राजीव रंजन|21 मार्च 2013|
72 वर्षीया रूखसाना खातून आज इस बुढ़ापे में कहाँ
जायेगी कोई नहीं जानता. कहती है यहीं से उसने बचपन से जवानी और फिर बुढ़ापे में कदम
रखा है. नाती-पोते सबको गोद में खिलाया है. एक आशियाना था जिसके उजड़ जाने की
कल्पना मात्र से ही रूखसाना फूट-फूट कर रो पड़ती है. मसोमात समीना खातून की भी आखों
के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा. सोचा था रहने का ठौर तो है अपना और बच्चों का
पेट भर भरना है जिंदगी कट जायेगी, पर अब जब जमीन खाली करने का आदेश मिला है तो
मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. ये कहानी सिर्फ रूखसाना और समीना की ही नहीं
है, बल्कि अब्दुल हकीम, मो० मुन्ना और न जाने और कितनों का आशियाना उजड़ने को है.
अंचलाधिकारी मधेपुरा ने इन्हें जिला मुख्यालय के वार्ड नं.13 स्थित मवेशी अस्पताल
रोड की वह जमीन जिसपर ये रह रहे थे, आज तक ही खाली करने का नोटिश दिया था.
75
वर्षीय अब्दुल हकीम कहते हैं बहुत साल पहले इस जमीन में अस्पताल के मुर्दे फेंके
जाते थे और इधर कोई आना भी नहीं चाहता था. हमें रहने की जमीन नहीं थी सो यहीं रहने
लगे और धीरे-धीरे पूरे परिवार ने इसी जमीन से अपनी खट्टी-मीठी यादों को संजोना
शुरू किया. पर सुनते है अब इस जमीन को न जाने कैसे मधेपुरा के जदयू के जिला
अध्यक्ष और जिला परिषद अध्यक्षा के पति सियाराम यादव ने लिखवा लिया है. सीओ की ओर
से जमीन को अतिक्रमित कहकर हमें लिखित नोटिश भी दे दिया गया है और जमीन में
सियाराम यादव ने मिट्टी भी भराना शुरू कर दिया है जिससे कई दर्जन महिला, पुरुष और
बच्चे अब सामान सहित खुले आसमान में रहने को विवश हो जायेंगे. विस्थापित होने की
कगार पर पहुंचे आज कई परिवार जिलाधिकारी के जनता दरबार भी गए थे पर तबतक
जिलाधिकारी उठ चुके थे लिहाजा इन्हें मायूसी ही हाथ लगी. इनका कहना था कि प्रशासन
इन्हें कहीं भी बसा दे जिससे इनका परिवार उजड़ने से बच सके.
जाएँ तो जाएँ कहाँ ?? दर्द मधेपुरा के दर्जनों परिवार का
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 21, 2013
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