लुट रही अस्मत किसी की
जनता तमाश बीन है ;
इंसानियत की निगाह में
जुल्म ये संगीन है .
चैनलों को मिल गयी
एक नयी ब्रेकिंग न्यूज़ ;
स्टूडियों में जश्न है
मौका बड़ा रंगीन है .
अखबार में छपी खबर
पढ़ रहे सब चाव से ;
पढने के शौक़ीन हैं .
ये हवस की इंतिहा' है
इससे ज्यादा क्या कहें ?
कर न लें औरत को नंगा
ये मर्द की तौहीन है .
बीहड़ बनी ग़र हर जगह
कब तक सहेगी जुल्म ये ;
कई और फूलन आएँगी
पक्का मुझे यकीन है.
--शिखा कौशिक, शोध छात्रा
ये हवस की 'इंतिहा' है इससे ज्यादा क्या कहें ?///शिखा कौशिक
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 15, 2012
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bhale hi sabko ye masaledar news milgaya ho or achha v lagta ho, lekin sabhya samaj in mawaliyon ko mard ka darza nahi dega...
ReplyDeleteThis is the worst face of any best Society. .
ReplyDeleteAll are equally responsible for this. .
A matter of shame for all of us. . .