मधेपुरा जिला के बिहारीगंज थाना के जोतैली पंचायत का
रामपुर डेहरू गाँव.आज यहाँ चारों तरफ चीत्कारें सुनने को मिल रही है.यहाँ किसी का
बेटा मरा है तो किसी का भाई और किसी का पति.यानी कई जिंदगियां आज तबाह सी नजर आ
रही है.गाँव से बारात जब फुलौत गयी थी तो गाँव में दो दिन पहले जश्न का माहौल था,
आज रोने की आवाज से कलेजा दहल जाता है.कई घरों में चूल्हे जलने की स्थिति में नहीं
है, आखिर खाने की इच्छा किसे है.नाव डूबने से पांच लोग मरे तो और भी कई बातें अब
सामने आ रही हैं जो इलाके के लोगों को दर्द के साथ आक्रोश भी दे रहा है.
इन मौतों
के बाद प्रशासन का कोई भी पदाधिकारी गाँव नहीं पहुंचा है.गाँव के ही अर्जुन
महाराज, पैक्स अध्यक्ष सुरेन्द्र मेहता, पंकज
कुमार आदि ने मौत के बाद की कहानी जो
सुनाई वो प्रशासन के हिस्से में बहुत ही शर्मनाक बात है.लाशों का पोस्टमार्टम तो
किसी तरह हो गया था,पर उसके बाद अस्पताल के सारे अधिकारी वहां से रफूचक्कर हो गए
थे.पोस्टमार्टम करने वाले मेहतर ने बिना पैसे के लाश वापस करने से रोक दिया.देर रात
में लाशों को इतनी दूर गाँव लाना बड़ी समस्या बन गयी.एम्बुलेंस को कहीं गायब कर
दिया गया.अस्पताल प्रशासन का एक भी
आदमी इनकी मदद करने को तैयार नहीं था.आखिर एक
ट्रैक्टर भाड़ा कर लाश को देर रात गाँव लाया गया और चीत्कारों के बीच दाह संस्कार
किया गया.
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पांच लोगों
की एक साथ मौत पर उनके परिवार को जहाँ सांत्वना की जरूरत थी वहीं जिला या प्रखंड
स्तर के पदाधिकारियों ने गर्मी में सरकारी जनरेटर के पंखों में आराम फरमाना बेहतर
समझा. मधेपुरा के पदाधिकारियों ने
संवेदनहीनता की सीमाएं पार कर दी.मधेपुरा टाइम्स
ने जब उदाकिशुनगंज एसडीओ को फोन किया तो जवाब मिला हम मृत्यु प्रमाणपत्र लेकर जल्द
आ रहे हैं.चलिए अब इस परिवार को ‘डेथ सर्टिफिकेट’ में घूस नहीं देना पड़ेगा.गाँव आकर मुआवजे की बात तो दूर
मृतक के परिवारों को ‘कबीर
अंत्येष्टि योजना’ के
तहत भी राशि देने की बात अब तक नहीं कही गयी.
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यहाँ से
सूबे के मंत्री है माननीय नरेंद्र नारायण यादव.बताते हैं कि उन्होंने मोबाइल के इन
लोगों को धैर्य रखने के लिए कहा.योजना विकास एवं विधि मंत्री के पास अपने इलाके
में हुई मौतों के बारे में कोई योजना नहीं है.और विकास इस क्षेत्र का कैसा है वो
सब जानते हैं.अगर विकास हुआ रहता तो कल शौच नदी के पार जाने की लाचारी न होती और
आज इस गाँव में मातमी सन्नाटा नही पसरा होता.
बात साफ़
है, गरीबों की जिंदगी क्या और मौत क्या? जहाँ मंत्री से लेकर अधिकारी अपनी तोंद
भरने और अपने परिवार को वीआईपी सुविधा देने में लगे हों,वहां इसी तरह गाँवों में चीत्कारें
गूंजती रहेगी.
मौत से मातम: संवेदनहीनता की सीमा लांघी जिला प्रशासन
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 01, 2012
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