2008 की कुसहा त्रासदी का दर्द रह-रह कर उभर जाता है.इस त्रासदी ने कोसी के लोगों के दिल में ऐसी टीस छोड़ी है शायद कई दशकों तक दर्द देती रहे.प्रशासन तथा जनप्रतिनिधियों ने उस बुरे समय में जो लापरवाही दिखाई उसके सबूत आज भी मौजूद हैं.सिंघेश्वर प्रखंड का जजहट सबैला पंचायत के पंचायत भवन के बगल में गड्ढे में दो सौ बोरा सड़े चावल को प्रशासन ने यूं ही फेंक दिया.ये वो चावल थे जिन्हें बाढ़ के दौरान भूखे-नंगों यानी पीडितों को देना था.
एक कहावत है, “जब रोम जल रहा था तो नीरो चैन की बंसी बजा रहा था”. बाढ़ की विपत्ति के दौरान जहाँ ग़रीबों के बच्चे दाने-दाने को मुंहताज हो रहे थे वहीं प्रशासन इन चावलों को गोदाम में रखना मुनासिब समझ रही थी, बजाय इसके कि इसे पीडितों में बाँट दे.सिंघेश्वर प्रखंड की बीडीओ राजलक्ष्मी कुमारी मानती है कि इन चावलों को सड़ा देने के लिए पूर्व के अधिकारी जिम्मेवार हैं.
करीब दो सौ क्विंटल चावल को फेंक दिए जाने के बाद वहाँ की स्थिति पर यदि एक नजर डाला जाय तो आपकी रूह काँप जायेगी.इस सड़े हुए चावलों पर भी गरीबों के बच्चे टूट पड़े हैं.वे ढूँढने में लगे हैं कि शायद इनमे से कुछ मुट्ठी चावल भी ठीक-ठाक निकल जाए ताकि परिवार के लिए एक शाम के खाने का भी जुगाड़ हो जाए.पर इससे उन पदाधिकारियों को क्या जिनके घरों के बच्चे पिज्जा और बर्गर थोडा खाते हों, और ज्यादा कुत्तों के सामने फेंक देते हों.
200 बोरा चावल सड़ा कर गड्ढे में फेंका,चुन रहे गरीब के बच्चे
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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June 28, 2012
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