
बस इतना फसाना है,
शीसे की हवेली है,
पत्थर का जमाना है।
वो समझे या ना समझे
अंदाजे मुहब्बत के,
अवाज भी जख्मी है,
गीत भी गाना है।
उस पार उतरने की उम्मीद
बहुत कम है,
किस्ती भी पुरानी है,
तूफ़ान भी आना है।
वो बोले या न बोले
बातों से कुछ भी,

एक शक्स को आँखो से
हाले-दिल सुनाना है।
मासूम मुहब्बत का
बस इतना फ़साना है,
एक आग का दरिया है,
डूब के जाना है।
--प्रतीक प्रीतम,मधेपुरा
बस इतना फसाना है
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 28, 2011
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