अब जो मिले राहो मे पत्थर कही।
तो पूछूँगी उससे क्यूँ तू रोता नही,
ना जाने कितनी चोट देती है दुनिया तुझे,
क्यूँ तुझे फिर भी हर चोट पे दर्द होता नही?
ना अश्क बहाता है तू ना खुशी में हंसता है,
क्यों तुझे कोई एहसास भिगोता नही?
क्यूँ तेरा स्वाभिमान कभी खोता नही?
माना कि ये दुनिया बहुत बडी है,
पर अस्तित्व तेरा भी कोई छोटा नही,
ना तू शिकवा करता है, ना शिकायत,
क्या कोई गम तेरे दिल को छूता नही,
या तो तू आज तक कभी जागा ही नही,
या फिर खामोश दिल तेरा कभी सोया ही नही॥
--प्रतीक प्रीतम,मधेपुरा
पत्थर
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 25, 2011
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Achhi kabita hai, aur behtar likhne ki kosis kijiye.
ReplyDeleteaap ke kavita mai sachhai nazar ati hai....
ReplyDeleteबहुत खूब प्रीतम जी |
ReplyDeleteआपकी और कवितायें भी पढ़ी पर ये बहित अच्छी लगी |