चंद दिनों पूर्व की घटना है.इसे घटना ही कहना उचित है.मेरा प्यारा भतीजा बड़ी ढीठाई से एक अजन्मी फिल्म ‘थ्री’ का बिलकुल बकवास गाना ‘तमिल दिस कोलावरी डी’ को अपना सर हिला-हिलाकर तन्मयता से सुन रहा था.साथ ही कनखी से मेरा मूड भांप रहा था.
साहित्यकार होने के नाते गीत-संगीत का प्रेमी जरूर हूँ.लेकिन बिना सिर-पैर का यह नामुराद गाना सुनकर मेरे कंधे भी उचक रहे थे.अचानक मैं भतीजा से पूछ बैठा, “बेटा, यह नायाब गीत तुमने अपने मोबाइल में कहाँ से बटोर रखा है?”
शरारती मुद्रा में उसने सपाट स्वर में उत्तर दिया, “चाचा श्री, अपने जिगरी दोस्त की सलाह से मैंने राजधानी में इस गाने को ‘डाऊनलोड’ करवा लिया.” वह अपना सीना फुलाकर बोला, जैसे वह पानीपत का मैदान जीतकर आया हो.
मैंने मन ही मन कहा, “पिया जिसे भाये,सुहागिन वही है. नयी नस्लों को कड़वी-चटपटी और तेज धुन जरूरत से ज्यादा पसंद है.उसकी जिंदगी की रफ़्तार बढ़ गयी है तभी तो फोरस्ट्रोक बाइक में पेट्रोल और खुद ‘वन स्ट्रोक’ में डीजल डालकर ‘फाइव स्ट्रोक’ का रेस दिखाने के चक्कर में रोड पर ठुक जाता है या फिर किसी को ठोककर पुण्य का भागी बन रही है.”मैंने अपनी आँखें बंद कर एक लंबी सांस ली.
वह मनोयोग से गाना सुनने में मशगूल था.मैनें अपनी आँखें खोली और प्रसन्नता का लॉलीपाप दिखाकर उससे पूछा, “गाने का बोल अलबेला है,मगर मेरी समझ से परे है.शायद यह भाषाई खिचड़ी है.जैसे राजनीति का अपराधीकरण या फिर शिक्षा का खिचड़ीकरण.क्या तुम्हारी समझ में कुछ आ रही है?”
वह लापरवाही से अपना सर हिलाकर तपाक से उत्तर दिया, “शायद आपको पता नहीं.इस गाने को दक्षिण भारत के नेता कम सिने स्टार रजनीकांत के दामाद धनुष ने खुद बनाया है और गाया है.दामाद के गाने पर स्वयं ससुर भी तो थिरकने को तैयार हैं.इतना ही नहीं, सिने जगत के धाकड़ स्टारों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है.जबकि खुद धनुष ने इसे बकवास करार दिया है.” चहकते हुए पुन: गाने में वह खो गया.
मैंने सोचा, “महानों की खानदान में प्राय: महान ही पैदा होते हैं.तभी तो ३६५ दिनों की बटलोई आज घट कर कटोरी भर रह गयी है.जन्मतिथि और पुण्यतिथि की धूम में सरकारी राज-काज भी गुम हो जाता है.उनकी एक छींक खबर बन जाती है.उधर अभागों की बेकफ़न लाश यों ही सड़क पर सड़ जाती है.ऊँची दूकान का फीका पकवान भी ऊँची कीमत में बिक जाता है.” मैंने अपने सर को हल्का सा झटका दिया.
हठात मेरी अपनी व्यंगकाव्य की चंद पंक्तियाँ याद आ गयी-
बैजू बाबरा और तानसेन अब,
नहीं जन्म लेते इस जमाने में,
शक्ल बिगाड़कर सब मस्त हैं,
माइकल जैक्शन कहलाने में.
आज गोरी मेम साड़ी-ब्लाउज में जो आकर्षण पैदा करती है वही आकर्षण देशी मेम बिकनी-चोली-चड्ढी
में पैदा कर रही है.जब शुद्ध सोने के गहने गढ़ने में लाचारी है तो नए दौर में शुचिता का क्या औचित्य?
![](http://2.bp.blogspot.com/-dP8qQYbYQV0/TvaxCugGAqI/AAAAAAAACtg/7IYpcTioATk/s200/white-woman-wearing-sari.jpg)
यह भारत है.यहाँ खोटा सिक्का खरा सिक्के को धक्का मारकर बाजार से बाहर कर देता है. ‘धक्-धक् वाला’ ‘सेक्सी बाला’ का बोलवाला है. ‘डर्टी बाला’ भी रातों-रात सात करोड़ की हो जाती है और ‘नीट एंड क्लीन बाला’ को कोई घास डालने वाला नजर नहीं आता.मेधावी और प्रतिभाशाली हैं निठल्ले और नेताओं-अभिनेताओं की है बल्ले-बल्ले.
आखिर, हालात से समझौता करना ही हम समझदारों का परम कर्तव्य है. ‘बोल कॉन्डोम बिंदास’ की तर्ज पर मेरे मुखारबिंद से अनायास फिसल गया-बोल ब्यॉज, कोलावरी -कोलावरी डी.
--पी० बिहारी ‘बेधड़क’ (संपर्क:9006772952)
‘बोल ब्वायज कोलावरी कोलावरी डी’
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 25, 2011
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![‘बोल ब्वायज कोलावरी कोलावरी डी’](http://1.bp.blogspot.com/-d9fQlaoAgdo/TvaxDRcIA-I/AAAAAAAACtk/K71KSsLRlXY/s72-c/kolaveri.jpg)
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