रूद्र ना० यादव/११ सितम्बर २०११
भादो में जहाँ सघन वर्षा की उम्मीद किसान लगाये थे और इसी पर धान की फसल के अच्छा होने की सम्भावना टिकी रहती है,वहीं इस बार ये महीना भी धोखा देता नजर आ रहा है.इस सम्बन्ध में एक बहुत ही पुरानी कहावत है जिसमें कहा गया है कि भादो की गरमी भी बर्दाश्त से बाहर होती है और बारिश भी खूब होती है.बारिश वाली बात तो झूठी साबित हो रही है,हाँ धूप इतनी कड़ी जरूर हो रही है कि धान के खेत सूखने लगे हैं.जहाँ धान की फसल को अभी पानी में डूबा रहना चाहिए था वहां खेतों में पानी की भारी कमी से फसल अभी ही पीले पड़ने लगे हैं.स्थिति ये है कि गेहूं की तरह अब धान के खेतों में किसान पम्पसेट की व्यवस्था कर पानी पटा रहे हैं.पर इसमें एक तो खर्च बहुत ज्यादा पड़ रहा है.दूसरा कि आखिर कब तक इस कृत्रिम सिंचाई से फसल को बचाने का प्रयास ये किसान करते रहेंगे.इतना तय लगता कि बारिश का यदि यही हाल रहा तो कोसी में धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो सकती है और धान के भाव भी आसमान छू सकते हैं.और यदि किसान हमेशा घाटे का ही मुंह देखते रहेंगे तो स्वाभाविक है वे धीरे-धीरे खेती से मुंह मोड़ सकते हैं जो इस इलाके के विकास को बुरी तरह प्रभावित कर देगी.सरकार को भी चाहिए कि ऐसे हालात में किसानों की खुल कर मदद करें ताकि किसानों के चेहरे पर की मायूसी हट सके.
बारिश में कमी से किसान मुसीबत में,धान पर संकट गहराया
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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September 11, 2011
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