जरुरत पड़ी तो तेरी याद आई
आज मुझे भी इबादत की याद आई
सुन्न पड़ चुकने के बाद ही सही,
मगर तेरी तो याद आई....
बन के एक फरयादी आ गया
तेरे दर पर अपने सर को झुका..
अब तू सुने या न सुने मुझे
तेरे से कोई सिकवा नहीं....
मैं एक पगला सा खड़ा
सब पर यूँ हँसता रहा...
आज जब मैंने भी खाई हैं ठोकर..
सच कह रहा हूँ तब मैंने जाना तुझको..
अब तू मुझे अपना या ठुकरा दे तू मुझे...
गम बस एक बात का होगा कि
क्यू नहीं पहले तेरी याद आई
--संदीप सांडिल्य,मधेपुरा
जरुरत पड़ी तो तेरी याद आई
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 24, 2011
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