
बैद्यनाथ चाचा, बिहार के मधेपुरा जिले के एक छोटे से गांव ईटवा के रहने वाले हैं। चाचा यहॉ के एकमात्र मध्य विद्यालय में शिक्षक हुआ करते थे। सेवानिवृति के बाद भी चाचा ने पठन-पाठन नहीं छोड़ा और आज भी लगभग हर शाम गॉव के लोग, चाचा से देश-विदेश की जानकारी लेने और समझने के लिए इक्ठ्ठा होते हैं। चाचा का गॉव आज भी विकास की बाट जोहता है। गॉव में अखबार तब ही आता है, जब कोई 10 कि0मी0 दूर शहर जाता है। चाचा हमेशा से गॉव के लोगों के लिए खबरों के एक विश्वसनीय स्रोत रहें हैं।
गॉव के लोगों और बैद्यनाथ चाचा के लिए रेडियो, समाचार और सूचनाओं का एकमात्र उपलब्ध माध्यम है। आम दिनों की तरह आज जब शाम 7 :30 बजे चाचा रेडियो पर बीबीसी समाचार सुन रहे थे, तो एक खबर ने चाचा को शांत और गमगीन होने पर मजबूर कर दिया। खबर थी कि “ पहली अप्रेल से वित्तीय घाटे की वजह से बीबीसी रेडियो का हिन्दी प्रसारण बंद हो रहा है।”

“अगर सही खबर चाहिए तो बीबीसी सुनिये।” पूरे विश्व में यह एक मुहावरा बन चुका है और यह बीबीसी की उत्कृष्टता का सबसे बड़ा उदाहरण है। लेकिन, यह उत्कृष्टता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता बैद्यनाथ चाचा और उन जैसे करोड़ो लोगों के लिए बस यादें बन कर रह जाएंगी। एक अपुष्ट आंकड़े की माने तो बीबीसी हिन्दी रेडियो सेवा बंद होने से कुल तीन करोड़ लोग प्रभावित होंगे। खुद बीबीसी इस आंकड़े को दो करोड़ तक मानता है। ऐसे में सवाल उठता है कि केवल रेडियो पर खबरों के लिए आश्रित लोगों के पास अब क्या विकल्प बचते हैं?

यानि लब्बोलुबाब यही है कि एक अप्रेल से बीबीसी हिन्दी प्रसारण बंद होने से निश्चित तौर पर रेडियो पर समाचार प्रसारण का एक स्वर्णीम युग बीत जाएगा। तथ्य है, कि किसी भी राष्ट्र के विकास में सूचना और संचार सबसे अहम् होते हैं। प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व के देशों में विकसीत, विकासशील और पिछड़ा होने का अंतर बहुत हद तक इसी सूचना और संचार के असंतुलन के कारण है। यानि कि देश की एक बड़ी आबादी तक पुष्ट और निष्पक्ष सूचनाओं के न पहुंचने से अब विकास की कल्पना करना मूर्खता होगी।

हालांकि बीबीसी हिन्दी समाचार प्रेमियों के लिए वेब पर बीबीसी हिन्दी सेवा जारी रहेगी। लेकिन यह भी सच्चाई है कि हमारे देश में अभी भी महज् 6.9 प्रतिशत लोगों तक ही इंटरनेट की पहुंच है। वर्तमान में मोबाईल क्रांती और 3जी की शुरुआत होने से इसकी संख्या निश्चित तौर पर बढेगी, लेकिन फिर भी बैद्यनाथ चाचा और उनके जैसों के गॉवों तक इंटरनेट को पहुंचने में काफी समय लगेगा।
ऐसे में सवाल उठता है कि, क्या सरकार रेडियो समाचार प्रसारण की नीति में कोई अहम् बदलाव लाएगी या फिर अपने विकास के ईमारत को केवल कागजों पर खिंचती रहेगी।
--स्वप्नल सोनल, भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली
आप सुन रहें हैं, बीबीसी हिन्दी ।।
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 21, 2011
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