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मै रुकता तो वह भी रुक जाता
मै बैठता तो वह भी बैठ जाता
मै उठता तो वह भी उठ जाता
वह मेरी नक़ल कर रहा था और मै
उसके साथ खेल रहा था
मै लेट जाता तो वह भी लेट जाता
जब उसके साथ खेलते खेलते
थक गया
फिर उठ कर बैठ गया
और धीरे से उसके पास
जा कर पूछा कि "कौन हो तुम?
मेरे पीछे पीछे क्यों चल रहे?
मेरा नक़ल क्यों कर रहे हो?"
तभी "तुम्हारी" आवाज आई
मै हूँ तुम्हारी परछाई...........
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हा सच में तुम ही तो थी
मेरी परछाई भी तो तुम ही हो
जो हमेशा मेरे साथ रहता है
मुझसे कभी दूर नहीं जाता
मुझे सहारा देता है
मुझे जीवन जीने का रास्ता दिखता है
मुझे हारने नहीं देता
हर पल मेरे साथ रहता है
मुझसे कभी दूर नहीं जाता......
--हेमंत सरकार,मधेपुरा
मेरी परछाई
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 20, 2011
Rating:
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आप को बहुत बहुत धन्वाद की आप मेरी कविता को प्रकाशित किये मै तहे दिल से आप को धन्वाद देता हु,
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