बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायालय के प्रथम न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश्वर प्रसाद मंडल ‘मणिराज’ की जयंती पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति के० के० मंडल की उपस्थिति में उनके गाँव मुरहो में श्रद्धा पूर्वक मनाया गया.इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सहरसा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश आर० के० सान्याल थे.इस अवसर पर उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति आर० पी० मंडल
न्याय के साक्षात प्रतिमूर्ति थे.कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री मती भाग्यमणी देवी के द्वारा किया गया.विशिष्ट अतिथि के रूप में मधेपुरा सिविल कोर्ट के प्रथम जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा० रामलखन यादव तथा प्रधान न्यायाधीश कृष्ण कान्त त्रिपाठी थे.इस अवसर पर वक्ताओं ने स्व० राजेश्वर प्रसाद मंडल को मानवता के पुजारी, रूढ़ियों के भंजक,प्रगतिकामी, सामाजिक परिवर्तन के शब्द-साधक मसीहा और एक नेक इंसान बताया.
न्याय के साक्षात प्रतिमूर्ति थे.कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री मती भाग्यमणी देवी के द्वारा किया गया.विशिष्ट अतिथि के रूप में मधेपुरा सिविल कोर्ट के प्रथम जिला एवं सत्र न्यायाधीश डा० रामलखन यादव तथा प्रधान न्यायाधीश कृष्ण कान्त त्रिपाठी थे.इस अवसर पर वक्ताओं ने स्व० राजेश्वर प्रसाद मंडल को मानवता के पुजारी, रूढ़ियों के भंजक,प्रगतिकामी, सामाजिक परिवर्तन के शब्द-साधक मसीहा और एक नेक इंसान बताया.
मौके पर विधि मंत्री नरेंद्र नारायण यादव नेताओं के चरित्र को चरितार्थ करते हुए कार्यक्रम में दो घंटे देर से पहुंचे.
न्यायमूर्ति स्व० राजेश्वर प्रसाद मंडल का जीवन परिचय :
स्मृति शेष राजेश्वर प्रसाद मंडल का जन्म मधेपुरा जिला के गढिया में हुआ २० फरवरी १९२० को हुआ था.दादा रासबिहारी मंडल सुख्यात जमींदार एवं बिहार के अग्रणी कांग्रेसी थे. रासबिहारी मंडल के तीन पुत्र भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल तथा बिन्ध्येश्वरी प्रसाद मंडल राजनीति में सक्रिय थे.राजेश्वर पिता भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल और माता सुमित्रा देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे.टीएनबी कॉलेज भागलपुर से अर्थशाश्त्र में स्नातक और पटना वि०वि० से एम०ए० करने के बाद इन्होने १९४१ में पटना विधि महाविद्यालय से वकालत की डिग्री हासिल की.१९४० में इनका विवाह पटना में भाग्यमणी देवी से हुआ.
राजेश्वर प्रसाद १९४२ में वकालत पेशे से जुड़े.१९४६ तक मधेपुरा में वकालत करने के बाद ये १९४७ में मुंसिफ के पद पर गया में नियुक्त हुए.१९६६ में ये पटना हाई कोर्ट के डिप्टी रजिस्ट्रार बनाये गए तथा १९६९ में दुमका में एडीजे बने.१९७३ में हजारीबाग के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदस्थापित हुए और फिर १९७९ में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे उत्कर्ष पद पर.१९८२ में अवकाश ग्रहण करने के पूर्व वे समस्तीपुर जेल फायरिंग जांच समिति के चेयरमैन नियुक्त हुए.१९९० में ये राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य तथा १९९० में ही पटना उच्च न्यायालय में सलाहकार परिषद के सदस्य जज मनोनीत हुए.१० अक्टूबर १९९२ को इनके जीवन यात्रा का समापन पटना में ही हो गया.
बहुत सी महत्वपूर्ण उपलब्धियों से सजा था उनका जीवन.बहुत अच्छे खिलाड़ी ही नही,बहुत अच्छे इंसान भी थे वे.हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायलय के प्रथम न्यायाधीश थे वे.उन्होंने हजार पृष्ठ से भी अधिक विस्तार में साहित्य-सर्जना की,जिनमे सभ्यता की कहानी,धर्म,देवता और परमात्मा, भारत वर्ष हिंदुओं का देश,ब्राह्मणों की धरती आदि ग्रंथों में वंचितों के प्रति अपनी पक्षधरता द्वारा यह प्रमाणित किया किया है.’जहाँ सुख और शान्ति मिलती है’ जैसे रोचक उपन्यास में उन्होंने पाश्चात्य की तुलना में भारतीय संस्कृति का औचित्य प्रतिपादित किया है तो ‘सतयुग और पॉकेटमारी’ कहानी संग्रह में अपनी व्यंग दक्षता का प्रमाण दिया है.’अँधेरा और उजाला’ के द्वारा उनके नाटककार व्यक्तित्व का परिचय मिलता है तो ‘चमचा विज्ञान’ से कवि प्रतिभा का.
निचोड़ के रूप में वे मानवता के पुजारी,रूढियों के भंजक,प्रगतिकामी,सामाजिक परिवर्तन के शब्द-साधक मसीहा और सर्वोपरि एक नेक इंसान थे.
स्व० राजेश्वर प्रसाद मंडल के दो अनुज क्रमश: श्री सुरेश चन्द्र यादव,पूर्व विधायक तथा श्री रमेश चन्द्र यादव (अधिवक्ता) थे.चार अत्मजों में क्रमश: डा० अरूण कुमार मंडल (अवकाश प्राप्त असैन्य शल्य चिकित्सक), सुधीर कुमार मंडल एवं शेखर मंडल (अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त करके वहीं के अधिवासी) तथा किशोर कुमार मंडल(पटना उच्च न्यायालय में माननीय न्यायमूर्ति) हैं. पौत्रों में डा० मनीष कुमार मंडल (सर्जन, आईजीआईएमएस), आशीष मंडल (दिल्ली में अपना व्यवसाय), जय मंडल (विदेश में क़ानून विद्) हैं और ऋषि मंडल अभी स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं. अनुवंश परंपरा के रूप में आर० पी० मंडल हमारे बीच अभी भी मौजूद हैं.
( रूद्र नारायण यादव)
( रूद्र नारायण यादव)
न्याय के प्रतिमूर्ति थे जस्टिस आर० पी० मंडल : सान्याल
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 21, 2011
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My uncle Justice R P Mandal, was a unique personality, who had academic interest, wrote several books, including one on history, "Sabhyata ki kahani", had in depth knowledge and concerns of social issues, and ofcourse was a honest, upright judge, probably first one to be on the bench of a high court from Yadav community. He was unwell and Dashahara Sangeet Samaroh was to be held. My father, his younger brother Late Ramesh Chandra Yadav, the organiser, was having second thoughts on holding the programme, and Justice Mandal called him to say, "The show must go on".
ReplyDeleteJustice Mandal was quite liberal in granting bails at Patna High Court and confided to fellow judge that veteran criminals often get away from police or manage to get bail at District level, but poor litigants have to come to High Court or languish in jails. Most of them are often innocent.
I pay my respects and homage to the memory of Late Justice R P Mandal.