‘क्यों धूप जलाये दुखों की,
क्यों ग़म की घटा बरसे
ये हाथ दुआओं वाले
रहते हैं सदा सर पे
तू है तो अंधेरे पथ में हमें,
सूरज की ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी..’
क्यों ग़म की घटा बरसे
ये हाथ दुआओं वाले
रहते हैं सदा सर पे
तू है तो अंधेरे पथ में हमें,
सूरज की ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी..’
21वीं सदी में भी एक तरफ जहाँ बेटी के जन्म को आज भी बहुत परिवार में अभिशाप माना जाता हैं, जहाँ आज भी कभी बेटी को गर्भ मे तो कहीं दहेज़ के नाम पर जलाया जाता हैं, वहीँ माँ दुर्गा के रूप मे एक माँ कंचन देवी भी हैं, जो अपने दोनों पांव और एक हाथ से लाचार बेटी चंदा कुमारी के सपने को पूरा करने के लिए पिछले 17 वर्षो से लगातार अपने गोद मे लिए उसे शिक्षा दिलवा रही हैं.
फ़िलहाल प्रतिदिन कुशल युवा कार्यक्रम करवाने के लिए मधेपुरा जिला मुख्यालय के समिधा ग्रुप कौशल विकास केंद्र अपने गोद मे उठा कर लाती हैं. आर्थिक तौर पर कमजोर मगर अपने चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट रखे मधेपुरा जिले के भान टेकठी निवासी कंचन देवी बतलाती हैं कि 1 फरवरी 1998 को उनके घर मे एक बेटी का जन्म हुआ. जहाँ समाज मे बहुत लोग निराश हुए वहीँ पति चंद्रदेव प्रसाद और घर के सदस्यों ने लक्ष्मी आगमन
मान लालन पालन शुरू किया. बेटी का पुकारू नाम पायल और स्कूली नाम चंदा रखा. छोटी उम्र मे ही वो हमेशा खेलते-कूदते रहती थी. परन्तु जब उनकी बेटी दो वर्ष हुई तो एक दिन उसे 102 डिग्री बुखार हो जाने पर गाँव के ही एक डॉक्टर को दिखलाया. डॉक्टर ने पर्चे पर दवाई लिखा. उस दवाई को लेने के कुछ हफ्ता के अन्दर ही चंदा के हाथ पांव काम करने बंद होने लगे. किसी अनहोनी के डर से पहले मधेपुरा फिर सहर्षा मे डॉक्टर से दिखलाया परन्तु धीरे-धीरे एक हाथ और दोनों पैरों ने पूर्णत: काम करना बंद कर दिया. आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाबजूद अपने बेटी को अपने गोद मे उठा कर उसका इलाज करवाने दिल्ली लेकर चले गयी. वहां विभिन्न डॉक्टरों से मिलने के बाद शुरू मे लगा कुछ सुधार हो रहा मगर अंत मे वहां भी निराशा ही मिली. फिर अंत मे उसे लेकर जयपुर गयी. जयपुर मे नारायण सेवा संस्था वालों ने बहुत अच्छे से देखभाल करते हुए उपचार की शुरुआत की मगर कोई सुधार नहीं हुआ. वहां उन्होंने बच्ची को उन्हें सौप कर वापस घर चले जाने को कहा. मगर माँ का दिल कहाँ मानने वाला था. उसी समय बच्ची को अपने गोद मे उठाई और मधेपुरा वाला ट्रेन पकड़ कर वापिस लौट आई. इस बात को गुजरे हुए अब 17 वर्ष बीत चुकी हैं, मगर माँ नहीं थकी हैं. भविष्य मे समाज उनके बेटी का मजाक न बनाये इस लिए उन्होंने अपने बेटी को पढ़ाने की संकल्प लिया और अपने गोद मे ले जा कर पूरी स्कूली तालीम दिलवाई. माँ की असीम मेहनत रंग लायी और चंदा कुमारी बिहार बोर्ड से 2012 मे मैट्रिक और 2015 मे इंटर की परीक्षा उतीर्ण की.
माँ के दृढ संकल्प ने बेटी के आत्मविश्वास को इतना ऊँचा कर दिया कि चंदा कहती है कोई मुझे दया के दृष्टि से नहीं देखे इस कारण मैं अपने अन्दर वो सारे कौशल को पैदा करना चाहती हूँ कि मुझे अच्छी नौकरी प्राप्त हो सके. मैं लगातार आगे बढ़ना चाहती हूँ, मैं अपने शिक्षा के बल पर अपने पैरो पर खड़ी होना चाहती हूँ.
जाहिर है, इस बेटी की हिम्मत उन लोगों के लिए भी सीख है जो किसी विपरीत परिस्थिति में टूटने लगते हैं.
(वि. सं.)
‘ऐ माँ तेरी सूरत से अलग ....’: 17 वर्षों से गोद में लिए बेटी को शिक्षा दिला रही एक माँ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 27, 2017
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