कोसी में बेटी और बकरी का अंतर मिटा

|प्रवीण गोविन्द|27 अक्टूबर 2013|
सवा हाथ उपर करने के चक्कर में कोसी क्षेत्र प्रतिदिन पाप के गर्त में जाता दिख रहा है. यहां की एक मशहूर कहावत है कि बेटी के जन्म में धरती सवा हाथ भीतर चली जाती है और बेटे के जन्म में सवा हाथ उपर. सो, आज भी कोसी की बलुआही धरती पर नवजात कन्याओं के वध का प्रचलन जारी है. यहां बेटी और बकरी में अंतर मिट सा गया है. अधिकांश कन्याओं का वध ग्रामीण दाई महज सौ-दो सौ रूपये या फिर 10-20 किलो अनाज के लिए कर डालती है. पूर्व में कोसी कंसोर्टियम द्वारा कराये गये सम्पल सर्वे में भी इस सनसनीखेज सच का खुलासा हुआ था.
जानें इन्हें भी: इस मामले में कुछ गांव-समाज के लोग एक रहा करते हैं. यही कारण है कि विरोध में एक पत्ता तक नहीं हिलता और  बेटी को मार डालते हैं लोग. ग्रामीण दाई के साथ ही अब गृहस्वामी भी इस घिनौने कार्य को मूर्त रूप देने लगे हैं. इसके मूल कारण में दहेज प्रथा को माना जा रहा है. हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है लेकिन सच्चाई यह है कि प्रत्येक दिन ऐसी हत्याएं होती रहती हैं. पूर्व में ह्यूमन राइट्स एसोसिएशन द्वारा भागलपुर जिले के नौगछिया प्रखंड में कराये गये सम्पल सर्वे में भी उक्त बातें सामने आयी थी कि महज कुछ किलो अनाज व सौ-पचास रूपये के लिए ग्रामीण दाई नवजात कन्याओं का वध कर डालती हैं. यहां भी सर्वेक्षण के क्रम में इसका मूल कारण तिलक दहेज की कुरीति ही खुलकर सामने आयी थी.
यही है भयावह सच: जैसे ही गृहस्वामी को खबर मिलती है कि बेटी हुई है, तुरंत उसके वध की तैयारी शुरू हो जाती है. सूत्रों के मुताबिक, या तो गला दबाकर नवजात शिशु को यमलोक पहुंचा दिया जाता है या फिर उसके मुंह में तम्बाकू या नमक दे दिया जाता है. कहते हैं कि तम्बाकू या नमक मुंह में देने के कुछ ही देर बाद मासूम के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं. इस अविकसित और पिछड़े भूभाग में नमक चटाकर मारने वाली कहावत बहुत पुरानी और लोक प्रचलित भी है. तत्पश्चात कन्याओं को मिट्टी में गाड़ दिया जाता है या फिर कोसी की धारा में बहा दिया जाता है.
एक नजर इधर भी: सहरसा जिले में 2001 की जनगणना के अनुसार प्रति एक हजार पुरूष पर 920 महिला आबादी थी जो 2011 में घटकर 914 हो गयी है. इसी तरह सुपौल में 1000 पुरूषों पर 921 महिलाएं हैं. कहते हैं कि कन्या वध के कारण बेटियों की संख्या घट रही है. कुल मिलाकर, दुर्गा पूजा में लोग मन्नतें पूरी होने पर माता को खुश करने के लिए बलि देते हैं लेकिन कोसी अंचल में तो सालोंभर बेटी की बलि दी जाती है।
(श्री गोविन्द दैनिक भास्कर से जुड़े हुए हैं.)
[Different between daughter and goat vanished in Koshi]
कोसी में बेटी और बकरी का अंतर मिटा कोसी में बेटी और बकरी का अंतर मिटा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 27, 2013 Rating: 5

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