बचपन का प्यार, 30 वर्ष के बाद हुई मुलाकात, 60 वर्षीय एडवोकेट प्रेमी संग 55 वर्षीया डॉक्टर प्रेमिका हुई फ़रार
कभी खुशी से खुशी की ओर नहीं देखा,
तुम्हारे बाद किसी की ओर नहीं देखा,
ये सोचकर कि तेरा इंतजार लाज़िमी है,
तमाम उम्र घड़ी की तरफ नहीं देखा।
(मुन्नवर राणा)
उफ़! यह एहसास, यह समर्पण और यह इंतज़ार। नैतिकता और अनैतिकता के बीच यह प्रेम-कहानी कई मिथकों को तोड़ती नजर आ रही है तो कई सवालों को जन्म भी दे रही है। इस कहानी में प्रेमी पेशे से एडवोकेट है तो प्रेमिका पेशे से डॉक्टर है। प्रेमी चिर कुँवारा तो प्रेमिका तीन बच्चों की माँ है। डॉक्टर प्रेमिका 11 मई को एडवोकेट प्रेमी के संग फरार हो गई तो डॉक्टर के घर कोहराम मच गया। डॉक्टर प्रेमिका के पति जो खुद पूर्णियां में डॉक्टर हैं, ने के हाट थाने में पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराया। 16 मई को पुलिस ने महिला डॉक्टर (55) को सहरसा के गंगजला प्रोफेसर कॉलोनी स्थित प्रेमी एडवोकेट संजीव कुमार (60) के आवास से दोनों को बरामद कर लिया। दोनों को न्यायालय में पेश किया गया। न्यायालय ने अपहरण के आरोपी एडवोकेट संजीव कुमार को न्यायिक हिरासत में भेज दिया जबकि महिला डॉक्टर को उसकी मर्जी के अनुसार प्रेमी संजीव के घर भेज दिया।
एडवोकेट ने कहा वो मेरी बचपन का प्यार
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प्रेमी संजीव ने पुलिस के समक्ष स्वीकार किया कि वो मेरी बचपन का प्यार है। दोनों सहरसा में एक ही मुहल्ला के निवासी हैं और दोनों ने एक ही स्कूल में पढ़ाई की थी। पढ़ाई के बाद वे डॉक्टर बन गई और मैं एडवोकेट बना। जब शादी की बात आई तो डॉक्टर के परिजनों ने उसकी शादी मेरे साथ करने से इनकार कर दिया और उसे पूर्णियां में डॉक्टर के साथ ब्याह दिया गया। बकौल संजीव 'मैंने प्रण किया था कि शादी उसी से करूंगा। जब उससे शादी नही हुई तो शादी नहीं करने का संकल्प लिया और आज भी अविवाहित हूँ'।
30 साल बाद हुई मुलाकात ,बाकी जिंदगी साथ बिताने का लिया फैसला
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प्रेमी संजीव के अनुसार, करीब 30 साल बाद उनकी मुलाकात डॉक्टर प्रेमिका से उसके क्लिनिक में अनायास हुई।उसके बाद मोबाइल पर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। बातचीत से सिलसिला आगे बढ़ा तो फिर मुलाकात का दौर शुरू हुआ। कहा कि, एक साल बीतते-बीतते हम दोनों को लगने लगा कि हम दोनों अब अलग-अलग नही रह सकते हैं और बची जिंदगी साथ बिताने का फैसला किया। 11 मई को तयशुदा समय अनुसार, हम मिले और उन्हें लेकर सहरसा के लिए रवाना हो गया। जेल जाने से पहले संजीव कहते हैं 'खुशी इस बात की है कि मुझे मेरे बचपन का प्यार मिल गया। यह एहसास है, इसे शब्दों में बांधना कठिन है'।
नैतिकता बनाम अनैतिकता
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बहरहाल महिला डॉक्टर अपने पति नहीं, प्रेमी के घर जा चुकी है। निश्चित रूप से प्रेमी को पति बनाने में वैधानिक अड़चन है। दूसरी ओर पति का परिवार सकते में हैं। इस अजब-गजब प्रेम कहानी को लेकर शहर में चर्चाओं का दौर जारी है। सबके अपने -अपने तर्क हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या सचमुच प्यार जैसी कोई ऐसी भी चीज होती है जिसमे आदमी अपना भविष्य और जीवन दाव पर लगा देता है ?
"एफआईआर के बाद अधिवक्ता संजीव कुमार और महिला डॉक्टर को सहरसा से बरामद किया गया है। न्यायालय में महिला डॉक्टर का 183 और 184 के तहत बयान कलमबद्ध कराया गया। न्यायालय के आदेश पर संजीव कुमार को जेल और महिला डॉक्टर को उनकी इच्छा के अनुरूप सहरसा स्थित एडवोकेट संजीव के घर भेज दिया गया है।" -उदय कुमार, थानाध्यक्ष, के हाट, पूर्णिया.
रिपोर्ट - पंकज भारतीय, संस्थापक संपादक.

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