जिले के आलमनगर प्रखंड के गनौल गाँव में एक भूमि विवाद
के मामले को जिस तरह से एक दैनिक अखबार के द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है उससे इस
मुद्दे को जानने वाले लोग हैरान हैं. चर्चा आम हो रही है कि अखबार से जुड़े लोगों
को मामले को एकपक्षीय दिखाने के लिए बड़ी राशि भूस्वामी के द्वारा दी गई है.
क्या है मामला ?: मिली जानकारी के अनुसार
मामला करीब बीस साल पुराना है जब आलमनगर प्रखंड के कुंजौरी पंचायत के 211 भूमिहीन दलित
समुदाय के परिवारों को वर्ष 1992-93 में बासगीत पर्चा मधेपुरा के तत्कालीन जिला अधिकारी
के द्वारा दिया गया था. यह बासगीत पर्चा सिलिंग से प्राप्त जमीन से सम्बंधित था. पर
पर्चा देने के बाद अंचल कार्यालय आलमनगर कुम्भकरणी नींद में सो गया, जबकि पर्चाधारियों
को सरजमीन पर दखल दिलाना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए थी. जानकारों का मानना है कि निश्चित
रुप से भूस्वामी के धनबल पर ही उस समय के अंचलाधिकारी एवं उनके उत्तराधिकारी द्वारा
पर्चाधारियों को लगातार उनके जायज हक से मरहूम रखा गया होगा. कहते हैं कि सिलिंग में
गये जमीन के भूस्वामी अमरेन्द्र कुमार पैसे के बल पर जमीन मामले से जुड़े अंचल से लेकर
जिला तक के अधिकारियों को अपने पक्ष में कर लिया और फिर पर्चाधारियों के हितो के रक्षा
करने वाले अधिकारी ही जमीन दखल करवाने कानूनी अचड़न उत्पन्न करने लगे और दो दशक का
लंबा समय खींच दिया. बता दें कि इन दो दशकों में कई पर्चाधारी तो भूमिहीन रहते ही स्वर्ग
सिधार गये. गरीब पर्चाधारियों ने अंचल से लेकर जिला तक का दरवाजा बार-बार खटखटाया
पर नतीजा ढाक के तीन पात.
वर्तमान स्थिति: इस साल दशहरा के आसपास
जब पर्चाधारियों ने उन्हें मिली जमीन पर दखल करने के लिए बैठक की तो कथित भूस्वामी
बेचैन हो उठे. सूत्रों का मानना है कि भूस्वामी ने स्थानीय थाना को भी मिलाने का
प्रयास किया, पर बात नहीं बनी.
कहते हैं कि कुछ दिन पहले लगभग 300
पुरुष, महिला
एवं बच्चों के द्वारा जमीन पर दखल करने का प्रयास किया गया. तब स्थानीय प्रशासन ने
पर्चाधारियों को समझाकर मामला को शांत करवाया. घटनास्थल के दलितों की ओर से बताया
गया कि अंचल निरीक्षक द्वारा एक सप्ताह में
मामले का हल करने की बात कही गयी थी. पर समस्या का समाधान हो न सका. सूत्र बताते
हैं कि भूस्वामी ने स्थानीय पुलिस से इस मामले में बल प्रयोग करने को कहा पर स्थानीय
पुलिस द्वारा उन्हें स्पष्ट रुप से समझा दिया गया कि जमीन संबंधी मामले का हल जमीन
मामले से जुड़े विभाग से ही करवाये.
अंदर की बात: मधेपुरा टाइम्स सूत्रों
को मिली जानकारी के मुताबिक कोई उपाय नहीं निकलता देख भूस्वामी अमरेन्द्र कुमार ने
एक अखबार के उदाकिशुनगंज के संवाददाता को पकड़ा. जिले में प्रखंड स्तर के कई
पत्रकारों का स्तर किसी से छुपा हुआ नहीं है. और फिर कलम का सिपाही भूस्वामी का सिपाही
बनकर दलितों को उनके हक से वंचित करने और भूस्वामी की जमीन बरक़रार रखने के लिए
पुलिस प्रशासन के खिलाफ लिखना शुरू कर दिया. सूत्रों का यह भी मानना है कि जमीन से
जुड़े स्थानीय अधिकारी ने भूस्वामी को ही मदद करने का तो वादा किया, पर यह भी कहा
कि जमीन पर लाठी लेकर हम तो नहीं जा सकते हैं, थाना को मैनेज कीजिए. और फिर विगत तीन
दिनों से एक अखबार में जिस तरह लिखा जा रहा है वह शर्मनाक प्रतीत होता है. स्तरहीन
रिपोर्टिंग की हद पर करते हुए यहाँ तक लिख दिया कि वहां 27 झोपड़ियों में दलितों ने
खुद ही आग लगा लिया जबकि उक्त जमीन पर कोई झोपड़ी ही नहीं लगी है. अलबता भूस्वामी के
लठैत घूमघूम कर दलितों को डरा जरूर रहें हैं कि यदि उस जमीन पर गये तो अंजाम बुरा होगा.
उठते सवाल: इस पूरे एपिसोड में कई
सवाल उठते हैं. मसलन, बासगीत पर्चा मिलने के बाद दो दशकों तक यदि भूमिहीन दलितों
को जमीन पर दखल क्यों नहीं मिली ? जाहिर तौर पर इसमें कई अधिकारी संदेह के घेरे
में हैं. ग़रीबों को उनका हक दिलाने के लिए अधिकारियों के खिलाफ वहां के लोगों और
चौथे स्तंभ ने क्यों नहीं आवाजें उठाईं ? पीत पत्रकारिता के माध्यम से भूस्वामी के
गलत हितों की रक्षा करना क्या ये नहीं दर्शाता है कि दलितों से जुड़े एक गंभीर
मुद्दे को गलत रंग बिना ‘खुश’ हुए नहीं दिया जा रहा है ? आलमनगर में उस अखबार के रिपोर्टर
रहने के बावजूद उदाकिशुनगंज के रिपोर्टर के द्वारा खबर को लिखना क्या दाल में
कालेपन को नहीं दर्शाता है ? कुल मिलाकर स्थिति शर्मनाक है और यदि अब भी जिला
प्रशासन इस मामले में हस्तक्षेप कर दलितों को उनका हक क़ानून के मुताबिक नहीं
दिलाती है, तो निश्चित रूप से ये घटना समाज के निचले तबके के लोगों के साथ बड़ा
अन्याय कही जायेगी.
दलितों को दबाने के लिए भूस्वामी और अखबार का गठजोड़ !
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 20, 2013
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