गरीब परिवार की लड़कियाँ पैसे के अभाव में शिक्षा से वंचित न रह जाय इसके लिए
सरकार ने कस्तूरबा गाँधी बालिका आवासीय विद्यालय जैसी महत्वाकांक्षी
योजना की शुरुआत तो कर दी लेकिन आज की तारीख में ये विद्यालय घोर
अनियमितता का शिकार है और यह मात्र खाओ पकाओ योजना बनकर रह गई है । हालात इतने बदतर हैं कि विद्यालय की छात्रा ही नहीं बल्कि वार्डन व शिक्षिका भी डीएम के जनता दरबार में फरियाद लेकर
पहुचने को विवश है। सहरसा समाहरणालय स्थित डीएम के जनता दरबार में
सौर बाजार प्रखंड स्थित रौताखेम के कस्तूरबा गाँधी
बालिका आवासीय विद्यालय के छात्रा, वार्डन व् शिक्षिका का हुजूम फरियाद लेकर पहुंची.
सोनाली, खुशबू, जैसी पीड़ित छात्राएं
इतनी सारी समस्याओं के बावजूद भी पढ़ना चाहती है तभी तो डीएम के जनता दरबार में पहुंची है बदतर हालत का अंदाजा इससे भी लगता है कि विद्यालय की व्यवस्था से न केवल छात्रा बल्कि वार्डन व अन्य शिक्षिका भी पीड़ित है. सरकार प्रदत्त जो भी सुविधाएं
इतनी सारी समस्याओं के बावजूद भी पढ़ना चाहती है तभी तो डीएम के जनता दरबार में पहुंची है बदतर हालत का अंदाजा इससे भी लगता है कि विद्यालय की व्यवस्था से न केवल छात्रा बल्कि वार्डन व अन्य शिक्षिका भी पीड़ित है. सरकार प्रदत्त जो भी सुविधाएं
इन बच्चियों को मिले
हैं वह कागजो के बजाय धरातल पर नहीं उतरकर संचालक के मनमानी की भेंट चढ़ रहे हैं. मधेपुरा टाइम्स ने समस्या के बावत खुद भी
विद्यालय का भ्रमण किया और जो सच्चाई दिखी चौकानेवाली थी। सड़े गले आटा, निम्न स्तरीय भोजन
सामग्री, बिछावन पर चादर की जगह कम्बल साबुन तेल का अभाव। कुल मिला कर सरकार प्रदत्त जो भी सुविधा मिलती उसका घोर अभाव दिखा। इन सारी अनियमितता के अलावे इनके कागजातों में भी घोर अनियमितता दिखी. यहाँ तक की इनका रोकड़
पंजी भी अद्यतन नहीं था जो खुद यहाँ की हालत को बयां कर रहा था । कुल मिलाकर
हालात गरीबी के साथ मजाक उड़ाने
जैसा लगा।
हालाँकि खुद जिलाधिकारी ने
भी छात्राओं की शिकायत पर विद्यालय का औचक निरिक्षण किया और वहां
व्याप्त अनियमितता को देखा। साथ ही इसके लिए उन्होंने जिला शिक्षा
पदाधिकारी के नेतृत्व में एक जाँच कमिटी भी गठित की जिसके जांचोपरांत कार्यवाही होने की बात बताई गई । इस पूरे घटना क्रम की बावत जब हमने जिलाधिकारी से जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि जाँच का आदेश दे दिया है जाँच होगी फिर करवाई होगी ।
जो भी हो, ये विद्यालय घोर अनियमितता का शिकार है। जरुरत है विद्यालय की
व्यवस्था सुधारने की वरना गरीबों की बेटी के आँखों में जो सपने सजे थे वह कहीं टूट न जाये ।
शिक्षा बना मजाक : हाल कस्तूरबा विद्यालय का
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 22, 2013
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