पावन स्मरण करें मूर्खों और मूर्ख बनाने वालों का

आज विदेशियों का अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त मूर्ख दिवस है।  इसी परंपरा में हम भी उन सभी के श्रेष्ठतम अनुचरों की फौज में शामिल हो गए हैं इसलिए हम भी उनके साथ कंधे से कंधा और दिल से दिल मिलाकर अनुचरी कर रहे हैं।
आज का यह अप्रेल फूल पर्व उनका भी, और हम सभी का भी ऎसा एकमात्र वार्षिक पर्व है जो हमारे व्यक्तित्व का वास्तविक और शाश्वत बोध कराकर हमें गर्व और गौरव प्रदान करता है।
साल भर में यह अकेला ऎसा दिन होता है जब हम सही अर्थों में वैसे ही दिखते और बनते हैं जैसे वाकई हैं। देश और दुनिया भर में अप्रेल फूल का दिन कोई मामूली नहीं है। अपने इलाकों से लेकर दुनिया भर में दो तरह के लोगों की भरमार है।  मूर्ख और मूर्ख बनाने वाले।
जिन्दगी का कोई सा क्षेत्र हो, गलियों से लेकर चौराहों और राजमार्गों से लेकर जनपथों तक इन दोनों ही किस्मों की जबर्दस्त सत्ता नज़र आती है। कुछ लोग जिन्दगी भर मूर्ख बने रहते हैं तो खूब सारे ऎसे हैं जो ताजिन्दगी औरों को मूर्ख बनाते हुए अपने उल्लू सीधे करते रहते हैं।
कई लोग एक-दूसरे को मूर्ख बनाकर काम निकाल रहे  हैं तो ढेरों ऎसे हैं जो काम निकलवाने के लिए मूर्ख होने का स्वाँग रच जाते हैं और काम निकलने के बाद दूसरों को मूर्ख बनाने का धंधा शुरू कर देते हैं।
मूर्ख बनने और बनाने का यह शगल कहीं पर शौक है तो बहुत सारी जगहों पर धंधा, जिसमें हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही चोखा।  मूरख बनाने का धंधा ही ऎसा है जिसमें न लागत पूंजी की जरूरत होती है, न ज्ञान या बुद्धि की, और न ही किसी रसूख या सिफारिश, चेक-जेक की, बस थोड़ी सी कला आ जाए, तो अपना तो जमाना ही निहाल हो जाए।
यों मूरख बनाने की असंख्यों विधाओं का इस्तेमाल हमारे आस-पास से लेकर दिल वालों की दिल्ली और पिंक सिटी से लेकर देश के हर कोने तक होता रहा है। इसके लिए न कोई शिक्षण संस्थान जरूरी हैं, न ट्रेनिंग सेंटर।
अपने इर्द-गिर्द खूब सारे ऎसे करामाती लोगों की भीड़ है जिनकी हरकतों और करिश्माई व्यक्तित्व से ही यह धंधा या शौक आसानी से सीखा जा सकता है। फिर यह हुनर ही ऎसा है जिसका ज्यों-ज्यों इस्तेमाल करें, त्यों-त्यों धार तीखी होय।
इस धंधे का हुनर ड्रेस कोड वालों से भी सीखा जा सकता है और बिना ड्रेस कोड वालों से भी। ड्रेस कोड वाले अनुशासित और चतुराइयों के साथ इस धंधे को इस तरह आजमाते हैं कि औरों को भनक तक नहीं लग पाती कि उन्हें मूरख बनाया जा रहा है। लोग बोतल में उतरते चले जाते हैं और तब तक अंधविश्वासों से घिरे रहते हैं जब तक कि बोतल का ढक्कन बंद करने का वक्त नहीं आ जाए।
आजकल हर क्षेत्र में इन दो तरह के लोगों का ही बोलबाला है। मूरख बनने और बनाने वालों का। आदमी का कद भी अब नापा जाने लगा है तो इस हुनर की ऊँचाइयों और करामातों से। जो दूसरों को जितना अधिक मूरख बनाने में कामयाब हो जाता है वही अपने जमाने का सिकंदर हो जाता है।
कुछेक दकियानूसी और धर्मभीरू लोगों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर यही कर रहे हैं। कोई किसे बना रहा है, कोई किसे। लोगों के सामने अपने निजी स्वार्थ और उच्चाकांक्षाओं के महल इतने अधिक खड़े हो गए हैं कि उन्हें अपनी कामनाओं की पूत्रि्त के सिवा कहीं कुछ दिखता ही नहीं। और यहीं से शुरू होता है सफर मूरख बनने और बनाने का।
सारे के सारे एक दूसरे को बना रहे हैं। किसी को बन जाने का पता चल जाता है और किसी को अंत तक नहीं। अब तो बनने और बनाने का धंधा वैश्वीकरण और उदारीकरण के जमाने का वह सबसे बड़ा धंधा हो चला है जिसमें बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों से लेकर बड़े-बड़े लोगों के नाम सामने आ रहे हैं।
बहुत बड़ी संख्या ऎसे लोगों की है जिनकी आजीविका का यही सबसे बड़ा साधन है। समझदार होने के बाद से ही इन लोगों ने औरों को मूरख बनाने का जो धंधा आजमाया, लगातार उछालें मार रहा है और इन्हीं लोगों की आजकल पूछ हो रही है।
आजकल तो जो औरों को बनाने की कला में जितना अधिक पारंगत है वह उतना ही ज्यादा लोकप्रिय और आकाओं का स्नेहपात्र बना फिर रहा है। अपने इलाके में भी ऎसे लोगों की खूब भरमार है जो औरों को मूरख बनाकर अपनी चाँदी कूट रहे हैं, लोकप्रियता के शिखरों का स्पर्श कर रहे हैं और बहुत बड़ी संख्या में उनके अनुचरों के समूह हैं जो बनकर भी अपने आप पर गर्व महसूस कर रहे हैं।
मूरख बनने और बनाने के धंधे में कोई मर्यादा या सीमा रेखा नहीं है। जो जिसे जितना ज्यादा बना सकता है, बनाए।  इसमें भी वे लोग ज्यादा मशहूर हैं जो औरों को बड़े ही सलीके से मूरख बनाते रहते हैं और सामने वालों को पता भी नहीं चलता कि वे बन रहे हैं।
अब तो औरों को मूरख बनाने का धंधा करने वालों की बाकायदा दुकानें सजी हुई हैं, उनके भी अपने झण्डे और डण्डे हैं, बैनर हैं और अपने-अपने ड्रेस कोड भी। किसम-किसम के रंगों से भरे हुए इन समूहों के लोग संगठित स्वरूप में अब सभी के सामने हैं और इनकी हरकतों और करामातों से साफ झलकता भी है कि वे औरों को बनाने के लिए ही निकले हुए हैं।
जहाँ जितने ज्यादा लोगों को बना सकें, उतने अधिक मूरख बनाने का धंधा ही इनकी जिन्दगी का आधार है। अब इस धंधे में सभी तरह के क्षेत्रों के प्रतिभाशालियों का जमावड़ा होने लगा है। सभी को लगता है कि आज का यही सबसे बड़ा और लाभकारी उद्योग है जिसने और सारे धंधों और हुनरों को पीछे छोड़ दिया है।
इस धंधे में अब जात-जात के मदारियों के डेरे सजे हुए हैं जिन्होंने पीढ़ियों पुराने हुनरमंद मदारियों तक को पीछे छोड़ दिया है। आज का दिन सभी प्रकार के मूरखों और मूरख बनाने वाली हस्तियों के नाम समर्पित है। आइये इन तमाम प्रकार के लोगों का पावन स्मरण करें और अपनी भावभीनी श्रद्धा समर्पित करें।
सभी .......... को अप्रैल फूल की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई.....


डॉ. दीपक आचार्य (9413306077) 

पावन स्मरण करें मूर्खों और मूर्ख बनाने वालों का पावन स्मरण करें मूर्खों और मूर्ख बनाने वालों का Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 01, 2013 Rating: 5

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