जनता दरबार का सच: हद कर दी डीडीसी आपने

रूद्र ना० यादव/14 अगस्त 2012
जिलाधिकारी का जनता दरबार. जिले भर के लोग शायद अंतिम उम्मीद लेकर यहाँ गुहार लगाने आते हैं.पर उन्हें शायद ही इस बात का एहसास होता पाता है कि यहाँ बैठे अधिकांश पदाधिकारी को उनकी समस्या के निदान से शायद ही कोई लेना देना होता है.वे सिर्फ यहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर समय गुजारने के लिए आते हैं.बेमन से बैठे इन पदाधिकारियों के लिए जनता दरबार का वक्त गुजारना इतना भारी लगता है कि यहाँ पीड़ित रो-रोकर अपनी व्यथा सुनाते हैं और ये उनकी बात पर या फिर आपस में बातकर ठहाका लगाते रहते हैं.जिलाधिकारी और एक-दो एडीएम को छोड़कर यहाँ बाक़ी को तो शायद पीडितों की समस्या समझ में भी नहीं आती दिखती है.
    अब जिले के डीडीसी श्रवण कुमार पंसारी को ही लीजिए.उच्च वर्ग की एक लड़की ने जब डीडीसी से बहस करना शुरू किया और कहा कि आपलोग दिमाग नहीं लगाते हैं तो डीडीसी साहब ने दिमाग लगाया और एसडीओ उदाकिशुनगंज को फोन लगाया.कहा कि मैं चाहता हूँ कि इसे महादलित वाली सूची में डाल दिया जाय.उच्च वर्ग की लड़की को महादलित की सूची में???? शायद सूबे के मुख्यमंत्री की भी इतनी क्षमता नहीं, जितनी डीडीसी ने हिम्मत दिखाई. अरे ! पर यह क्या? सिविल सर्जन ने उनकी बात का मजाक उड़ाते हुए हँस कर कहा ए महाराज ! इसका जात बदल दीजियेगा क्या? और सारे पदाधिकारियों ने ऊँचा ठहाका लगाया. लगा पीड़ित की समस्या इनके ठहाके की बलि चढ गयी हो. सिविल सर्जन रुके नहीं अब जब धर्म बदलने की बात कहकर डीडीसी का मजाक उड़ाया तो भड़क उठे डीडीसी. कहा आपलोग शांत रहिएगा या नहीं, हम लोग को सॉल्व तो करने दीजिए.बेचारी इतना दूर से आई है.
   हम नहीं समझते कि इससे ज्यादा कुछ लिखने की आवश्यकता है.आप समझ गए होंगे कि जिलाधिकारी के जनता दरबार में जिलाधिकारी की अनुपस्थिति में समस्या सुलझाने का स्तर क्या है.तभी तो जिले के बहुत सारे लोगों के अब जनता दरबार भी दौड़ते-दौड़ते चप्पल घिस गए हैं और जिले में समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं.

जनता दरबार का सच: हद कर दी डीडीसी आपने जनता दरबार का सच: हद कर दी डीडीसी आपने Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 14, 2012 Rating: 5

2 comments:

  1. Ye To aam Bat h Sir Ji, AAp ne publish ki na, uska v koi asar nhi prne wala.AAkhir hm aur aap kon hote h?Sb law, Power unhi ke pas to h....
    Kahte h na ki hm 65th freedom ma rhe h ... sb aise hi h...

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  2. isse sabit ho gaya ki ye apna kam kitna seriously karte hain...ek citizen ki sikayat mazak mein udate hain...in nasamajh afsaron ko samajhna hahiye ki unke post unki property nahi hai..unko salary hum logon se tax le ke di jatei hai.

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