“हरा भरा रहता मदिरालय,
जग पर पड़ जाए पाला,
वहां मुहर्रम का तम छाए,
यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्गलोक से सीधी उतरी
वसुधा पर, दुःख क्या जाने,
ईद मनाती मधुशाला.”
हरिवंश राय बच्चन की लिखी ये पंक्तियाँ आज जश्न का दिन होते हुए भी खराब मौसम की भेंट चढ गयी.नया साल का पहला दिन और मौसम की बेरूखी.दिन भर हलकी बारिश क्या होती रही जश्न मनाने वालों के अरमान पर मानो पानी फिर गया.बच्चों को जहाँ बाहर न खेलने की अभिभावक की नसीहत झेलनी पड़ी वहीं युवाओं में से भी बहुतों ने मौसम को कोसते हुए घर में ही रहना बेहतर समझा.सबसे बुरी स्थिति तो शाम आते-आते हुई.बारिश तो शाम में बढ़ी ही,ठंढ में भी अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गयी.नववर्ष के प्रथम दिन को कई सालों से इतना घटिया मौसम नहीं रहा था.और इसकी सबसे बड़ी मार पर गयी पियक्कड़ों के अरमान पर.
शहर के अधिकाँश दुकानदारों ने आज पियक्कडों को भरपूर पिलाने की तैयारी कर रखी थी. ‘बड़ा सज-धज के मेरे घर से मेरा जनाजा निकला, मगर वो नहीं निकला जिसके लिए जनाजा निकला’ की तर्ज पर दुकानों पर पियक्कड़ नहीं आये.मधेपुरा होटल के सामने वाला दुकानदार मायूस होकर कहता है, “मौसम नहीं देख रहे हैं,कैसा हो गया है?पिछले साल बिक्री ज्यादा थी,पर इस साल कम गयी है,अब तो रोड पर भी लोग कम नजर आते हैं,क्या बिकेगा?”
मौत का खौफ सबको होता है ये बात आज मधेपुरा की मधुशालाओं पर घटी भीड़ ने साबित कर दिया.खैर,अभी कुछ नहीं बिगड़ा है.विद्यापुरी के ही घर में दुबके एक पियक्कड़ ने रास्ता बताया.कहा, “पीनेवाले को क्या फर्क पड़ता है,एक जनवरी और दो जनवरी में, कल मौसम ठीक हो जाएगा तो कल ही ‘खूब जमेगा रंग,जब मिल बैठेंगे..हम, आप और बैगपाइपर.”
खराब मौसम में दुबके पियक्कड़,घटी दारू की बिक्री
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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January 01, 2012
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January 01, 2012
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