
तो खुद से पूछा की क्या मै
स्वयं की आत्मकथा लिख सकता हू.
थोडा घबराया फिर
हिम्मत कर लिखने बैठ गया
आत्मकथा लिखना आसान नहीं है
आत्मकथा आत्मा की आवाज है
जिन्दगी का आईना है
अच्छे बुरे शब्दों का संगम
अपनी आलोचना करनी पड़ती
सत्य को शब्द देना पड़ता है

फिर भी मै लिखने लगा अपनी आत्मकथा
लिखते वक्त मै स्वार्थी बन जाता
सत्य को छुपाता झूठ को बनाता
अपना मुँह मिया मिट्टू
परन्तु खुद को सम्भाल कर लिखना छोड़ देता
फिर सत्य को अपने अंदर से निकलता
मैंने महसूस क्या की लिखते वक्त
खुद को शुन्य में रखना पड़ता है
अपना स्वाभिमान,अंहकार,कर्म,भावनाएं
रिश्ते नाते को दूर रखना पड़ता है
और मै इन सबों से दूर नहीं जा सकता
अपनी आत्मकथा मै नहीं लिख सका
और कोई अपनी आत्मकथा
लिख भी नहीं पाता ,लिख भी नहीं पाता ........
--हेमंत सरकार, मधेपुरा
~~~~~~आत्मकथा~~~~~~~~
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 15, 2012
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Osom ... वाह ..! वाह ..!! बस दिल से यही शब्द निकली आपकी इस कविता " आत्मकथा " को पढने के बाद ! आपके सोच ओर कलम की बहुत ही श्रेष्ट रचना है .. ये बहुत बड़ा सच है अपनी आत्मकथा लिखना इतना आसान नहीं है !
ReplyDeletebahut hi achhi rachna
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