हवाएँ सर्द आती है

तू जब भी रूठ जाती है,
गजल बनके सताती है।
ना कोई गम ठहरता है,
ना खुशियाँ लौट आती है।
भटककर खुद ही आते हैं
मेरे पग मय की बस्ती में
तेरी यादों का पहरा भी
ना मुझको रोक पाती है।
सुना है तुमने अब अपना
ठिकाना है बदल रक्खा,
यकीं कैसे करेगा दिल
जो चिट्ठी वापस ना आती है।
तेरा वो मुझपे मर मिटने सा
बेकल पल को अब सोचूँ ,
वो झूठा सच मगर सच में
मुझे बेहद रूलाती है।
मेरी माँ है बहुत भोली
वो हरपल मुझसे कहती थी,
बदन ढँक के तू बाहर जा
हवाएँ सर्द आती है।

 
--शम्भू साधारण,मधेपुरा
हवाएँ सर्द आती है हवाएँ सर्द आती है Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 06, 2012 Rating: 5

1 comment:

  1. बहुत अच्छी कविता------ तू जब भी रूठ जाती है,
    गजल बनके सताती है।

    ReplyDelete

Powered by Blogger.