पढ़ लूँगी मैं चेहरे को
तो तुमने चेहरे को
व्यस्त बना लिया
व्यस्त बना लिया
.... मुझे हँसी आई
उम्र होने पर भी
बच्चों वाली कोशिश पर !
बच्चों वाली कोशिश पर !
चेहरा व्यस्त हो , शांत हो
लम्बी सी मुस्कान ओढ़े हुए हो
पर वह मन से अलग नहीं होता ....
अगर मन से अलग
चेहरे की भाषा होती
चेहरे की भाषा होती
तो शिव ने भस्मासुर की
मंशा नहीं जानी होती
यमराज के आगे सती की
निष्ठा की जीत नहीं होती
सत्य तो यही है ... कि
प्रहलाद के मन ने ही होलिका को जलाया
........
रक्त , जाति, धर्म , देश के
पर ठहराव मन के रिश्तों में होता है
और मन
चेहरे से विलग नहीं होता ...
........
मन से अलग होना रूह से अलग होना
और जब शरीर खाली होता है
तो उस भटकती रूह को
तुमने भी देखा और सुना है
फिर कैसे सोच लिया
तुम्हारी रूह मुझसे नहीं मिलेगी
कुछ नहीं कहेगी
....
खनकती हँसी
बेजान गूंजती हँसी का फर्क
मन को पता होता है -
!!!
--रश्मि प्रभा,पटना
मन को पता होता है
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 09, 2011
Rating:
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October 09, 2011
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रिश्ते अनगिनत होते हैं
ReplyDeleteरक्त , जाति, धर्म , देश के
पर ठहराव मन के रिश्तों में होता है
और मन
चेहरे से विलग नहीं होता ...
मन चेहरे से विलग हो भी नहीं सकता आखिर जो मन मे चल रहा होता है ,जैसा चल रहा होता है वैसे ही भाव हमारा चेहरा जाने अनजाने सब को दिखाता रहता है।
बहुत ही अच्छे भाव लिए है कविता।
सादर
यह रचना 'मेरी भावनाएं' में पढी....
ReplyDeleteयहाँ पर पढ़ना और भी सुखद है...
सादर बधाई रश्मि दी...
मधेपुरा टाइम्स के माध्यम से सुन्दर कवितायें पढ़ने को मिल रही हैं.रश्मि जी की कविताएं बहुत कुछ कह जाती हैं.
ReplyDeleteखनकती हँसी
ReplyDeleteबेजान गूंजती हँसी का फर्क
मन को पता होता है -
मन को तो सब पता ही है...
मनोभावों को पढती सुन्दर रचना
खनकती हँसी
ReplyDeleteबेजान गूंजती हँसी का फर्क
मन को पता होता है -
!!!
बिल्कुल सच कहा है आपने इन पंक्तियों में ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
खनकती हँसी बेजान गूंजती हँसी का फर्क मन को पता होता है -bar-bar padhne ko jee chahta hai.......bahot sunder.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, कहां तक सोच लेती हैं आप,वाह
ReplyDeleteमन से अलग होना रूह से अलग होना
और जब शरीर खाली होता है
तो उस भटकती रूह को
तुमने भी देखा और सुना है
फिर कैसे सोच लिया
तुम्हारी रूह मुझसे नहीं मिलेगी
कुछ नहीं कहेगी