मैं कविता लिखता हूँ 

मैं कविता लिखता हूँ  
मगर क्या लिखता हूं ,
ये जानता  ही नहीं हूं.
जब सोचने लगता हूँ 
मैं कविता लिखता हूँ ,
कलम हाथ से छूट जाती है 
कहीं घंटे बाद जब,
सोचने से लौटता हूँ,
लगता है समाप्त हो गयी है 
कविता मेरी ,
और टूट गयी है 
कविता से मित्रता मेरी,

फिर.....
 "मैं कविता लिखता हूँ "
जब सोच पाता हूँ
सोच में डूब जाता हूँ
लिखना क्या चाहता हूँ
लिखा क्या जाता है,
कहना क्या चाहता हूँ
कहा क्या जाता है.
तो फिर कलम बंद कर ,
चलते -चलते रूककर 
कलम पकड़ लेता हूँ,
अस्थिर  मन को 
स्थिर कर बस इतना लिख पाता  हूँ
"मैं कविता लिखता हूँ "
मगर क्या लिखता 
ये जानता हीं नहीं 
इतना मानता नहीं 
कविता लिख सकता नहीं .................
  -आजाद चन्द्र शेखर ,मधेपुरा

मैं कविता लिखता हूँ  मैं कविता लिखता हूँ  Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 12, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. kuch samajh me nahi aata kavi kya kahna chahte hain.

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