संत और सत्ता

सत्ता के गलियारों में घूमते साधू, संत और सन्यासी,
अगुआई  में बढ़-चढ आये धूर्त, चतुर-सियासी.
धूर्त, चतुर-सियासी, दे धर्म की खूब दुहाई,
जनमानस का दोहन कर, खाते दूध और मलाई.
कह 'बेधड़क' कविराय, जनता जनार्दन यह जानो,
ओढ़े भेडिया खाल भेड़ की, उसको तुम पहचानो.
--पी० बिहारी 'बेधड़क'
संत और सत्ता संत और सत्ता Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 08, 2011 Rating: 5

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