रब हो साज़िश में शामिल तो क्या कीजिए ,
मौत बन जाए साहिल तो क्या कीजिए
उसके शानो पर रोना हुआ है फज़ूल ,
मेरा साजन है गाफिल तो क्या कीजिए
दर्द कहने का अंदाज़ है बस जुदा ,
गर जो थम जाए महफ़िल तो क्या कीजिए
तुम ने पाई बुलंदी नई भी तो क्या ,
हो खुशी ही न हासिल तो क्या कीजिए
फूल ही फूल थे इस फ़िज़ा में खिले
मैं ही काँटों के काबिल तो क्या कीजिए
सूखा फिर भी नहीं है, दरख़्त -ए- वफ़ा
गर हो मौसम ही बोझिल तो क्या कीजिए
मौत बन जाए साहिल तो क्या कीजिए
उसके शानो पर रोना हुआ है फज़ूल ,
मेरा साजन है गाफिल तो क्या कीजिए
दर्द कहने का अंदाज़ है बस जुदा ,
गर जो थम जाए महफ़िल तो क्या कीजिए
तुम ने पाई बुलंदी नई भी तो क्या ,
हो खुशी ही न हासिल तो क्या कीजिए
फूल ही फूल थे इस फ़िज़ा में खिले
मैं ही काँटों के काबिल तो क्या कीजिए
सूखा फिर भी नहीं है, दरख़्त -ए- वफ़ा
गर हो मौसम ही बोझिल तो क्या कीजिए
--श्रद्धा जैन,सिंगापुर
रब हो साज़िश में शामिल तो क्या कीजिए
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 28, 2011
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