रूद्र नारायण यादव/२९ अप्रैल २०११
अब मधेपुरा जिले में उन्नत 'श्री विधि' से धान की खेती का प्रयोग होगा जिससे किसानों को भरपूर राहत पहुँचने की संभावना है.इस विधि से खेती को बढ़ावा देने के लिए कल कृषि विज्ञान केन्द्र के सभागार में प्रसार कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया.कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्य वैज्ञानिक डा० बी के जायसवाल ने किया जिसमे इस विधि से धान की खेती से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गयी.
इस कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए.सबसे पहले इसमें कृषि विज्ञान केन्द्र को एक हजार एकड़,जिला कृषि पदाधिकारी को ९०० एकड़ एवं जीविका संस्था को ५५० एकड़ इस विधि से खेती करवाने का लक्ष्य दिया गया है.इसमें किसानों को मुफ्त किट दिया जाना है.इसके लिए प्रत्येक पंचायत से किसानों का
चयन किया जाएगा.किसान के चयन से पहले जिस पंचायत का इसके लिए चयन होना है उसे "श्री पंचायत" कहा जाएगा और उस किसान को "श्री किसान". श्री किसानों को लगातार प्रशिक्षण देते रहना होगा जिससे इस विधि से धान की उन्नत खेती सफलता पूर्वक की जा सके.
इस अवसर पर जिला उद्यान पदाधिकारी महेश कान्त लाल, जिला कृषि परामर्शी मिथिलेश कुमार क्रान्ति,वैज्ञानिक रवीन्द्र कुमार जलज, डा० सुनील कुमार सिंह आदि भी कार्यक्रम में उपस्थित थे.मालूम ही की श्री विधि एक आजमाई हुई वैज्ञानिक विधि है और मधेपुरा जिले में इसकी सफलता इस जिले के किसानों के लिए निश्चित रूप से उन्नति का मार्ग खोलेगी.
|
क्या है श्री विधि:नई तकनीकी से धान की खेती एक समय में जब भारत में की कमी थी .तब श्री ने किसानो को सिद्ध किया की धान की पैदावार बढ़ाई जा सकती हैं .जिसमे कम पानी .कम बीज और कम रासायनिक खादों एवं दवाओं का प्रयोग करके इस विधि से देश के विभिन्न भागो में अनेक रूप से धान की पैदावार बढा सकते है | इस नई विधि से धान की उपज दोगुनी होती है. इस विधि से धान की क्रन्तिकारी खेती: श्री ( SRI ) विधि द्वारा चमत्कारी उत्पादन पा सकते है यह विधि १९८३ में मेडागास्कर में विकसित हुई थी |शुरू में कृषि वैजानिक इसे नकार रहे थे ‘ “कुछ अच्छा सही हो सकता है ” लम्बे समय तक करने से यह विधि किसान के समझ से दूर था कि वे उत्पादन दोगुना कर सकते है दस गुने कम बीज बोकर और आधा पानी देकर | किन्तु धीरे -धीरे यह बदल गया पौधे से पौधे कि दूरी बढाकर और कम पानी देकर एरोबिक कन्डिसन बनाकर पौधों कि ग्रोथ बढा सकते है श्री विधि आधारित नहीं है कि धान के लिए फसल पानी में डूबा होना चाहियें | परम्परागत पहले नर्सरी करते है और २५ दिन बाद मुख्य खेत में बो देते है और ६-७ के गुच्छो में बोते है जबकि श्री विधि द्वारा ८-१२ दिन के पौधे को बोते है और केवल एक जगह एक ही पौधा बोते है और उसके बीच की दुरी १० इंच रखते है , नया पौधा जमीन में जल्दी से लग जाता है और दुरी अधिक होने से अधिक खाद को ग्रहण करता है जबकि परंपरागत विधि में खाद के लिए पौधों में आपस में होड़ रहती है | अधिक दुरी और कम पानी से एरोबिक कन्डिसन में पौधा अच्छा ग्रोथ करता है इस विधि में कम बीज और कम रासायनिक पदार्थो से मिटटी की जैविक शक्ति बढ़ जाती है जिससे पौधा रोग के प्रति सहनशीलता बढा लेता है अधिक दुरी होने से कम्पोस्ट खाद आसानी से दे सकते है और (हो )के द्वारा खरपतवार का भी रोकथाम आसानी से कर सकते है जिससे उत्पादन बढ़ जाती है .और उत्पादन ८ बढ़ जाती है .(प्रति हेक्क्तेयर ) जो कि पुरे विश्व के उतपादन का दुगना और भारत के उतपादन का तीनगुना जादा है .परम्परागत रूप से लगभग ३००० से ५००० लीटर पानी हम एक किलो चावल पैदा करने में खर्चा करते है जबकि श्री विधि से इसका आधा पानी ही खर्च होता है .और जहा पर ज्यादातर जल्दी -जल्दी छिट- पुट वर्सा होती है वहा पर पानी देने कि भी आवश्यकता नही पड़ती .और श्री अभी गन्ना .बाजराऔर गेहू में रिसर्च कर रहा है और यह भारत के लिए जादू कि छडी के समान है भारत में धान मुख्य फसल है और यह लगभग पुरे फसल का २३% में बोया जाता है इसका सफल प्रयोग ३४ देशों में हो चुका है .(साभार:http://sunosuno.net/?p=1740) |
Scientists to sada se unnat kheti ki khoj karte rahe hai aur kjsano ko jyada paidawar ka lalach bhi dete rahe hai.Dukh to tab hota hai jab ye sunte hai ki fasal me daane gayab hai jyada pane ke lalach me hamesa nuksan hua hai. Inhi karno se vigyan ko abhishap bhi kaha gaya hai.
ReplyDelete