राकेश सिंह/०५ फरवरी २०११
शोर मच गया था चारों तरफ कि रेल मंत्रालय ने मधेपुरा में रेल इंजन कारखाना बनाने का फैसला वापस ले लिया है.सारे अखबारों ने हल्ला-हल्ला कर दिया था.लगा एक दुसरे से सुना और लिखते चले गए थे बंधुलोग.सच पता करने की जरूरत तो जैसे होती ही नही इन ख़बरों के पीछे की.ऐसे में मधेपुरा टाइम्स ने पहली बार अफवाह के दिन ही खबर छापी थी कि ये महज एक अफवाह है.(पढ़ें:इस अफवाह ने तो लोगों के होश उड़ा दिए) हमारे प्रधान संपादक रूद्र नारायण जी स्वयं ही निकल पड़े थे सच्चाई पता करने और फिर घंटे भर में ही उन्होंने पता कर ये रिपोर्ट लिखी थी.हमारे एक पाठक संदीप सांडिल्य ने तो बाक़ी अखबारों के विषय में यहाँ तक कमेन्ट लिखा था कि "सचमुच ये बड़ी खबर हैं.....प्रेस वालो को खबर लिखने से पहले बातो को पूर्णतः जान लेना चाहये ......पता नहीं देश का चौथा स्तभ कहा जाने वाला पत्रकारिता किस गर्त मे जा रहा है"
आज फिर सारे अखबार वाले लिख रहे हैं कि रेल इंजन समय से बनेगा,मुआवजा दिया जा रहा है आदि-आदि.
एक बड़ा सवाल.कैसे हो रही है आज की पत्रकारिता? क्या किसी ने भी अधिग्रहीत भूमि,जहाँ काम हो ही रहे थे,पर जाकर वहां जमे रेल के उच्च अधिकारी से पूछना तक मुनासिब नही समझा जो काम आज कर रहे हैं और उन्ही के बयान के आधार पर आज फिर अपने बयान से पलटते हुए कह रहे हैं कि बनेगा रेल इंजन कारखाना.
जो भी हो,आखिर सिर्फ मधेपुरा टाइम्स की खबर ही निकली सच कि मधेपुरा में बनेगा रेल इंजन कारखाना.
मधेपुरा टाइम्स की खबर निकली सच:बाक़ी अखबार पलटे पहले की खबर से
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February 05, 2011
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