आज तुम
बहुत याद आये
क्युं ?
नहीं जानती
शायद
तुमने पुकारा मुझे
तेरी हर सदा
पहुँच रही है
मन के
आँगन तक
और मैं
भीग रही हूँ
अपने ही खींचे
दायरे की
लक्ष्मण रेखा में
जानती हूँ
तड़प उधर भी
कम नहीं
कितना तू भी
बेचैन होगा
बादलों सा
सावन बरस
रहा होगा
मगर ना
जाने क्यूँ
नहीं तोड़
पा रही
मर्यादा के
पिंजर को
जिसमे दो रूहें
कैद हैं
तेरी खामोश
सदायें
जब भी
दस्तक देती हैं
दिल के
बंद दरवाज़े पर
अन्दर सिसकता
दिल और तड़प
जाता है
मगर तोड़
नहीं पाता
अपने बनाये
बाँधों को
ये क्या किया
तूने
किस पत्थर
से दिल
लगा बैठा
चाहे सिसकते
सिसकते
दम तोड़ दें
मगर
कुछ पत्थर
कभी नहीं
पिघलते
मैं शायद
ऐसा ही
पत्थर बन
गयी हूँ
बस तू
इतना कर
मुझे याद
करना छोड़ दे
बहुत याद आये

क्युं ?
नहीं जानती
शायद
तुमने पुकारा मुझे
तेरी हर सदा
पहुँच रही है
मन के
आँगन तक
और मैं
भीग रही हूँ
अपने ही खींचे
दायरे की
लक्ष्मण रेखा में
जानती हूँ
तड़प उधर भी
कम नहीं
कितना तू भी
बेचैन होगा
बादलों सा
सावन बरस
रहा होगा
मगर ना
जाने क्यूँ
नहीं तोड़
पा रही
मर्यादा के
पिंजर को
जिसमे दो रूहें
कैद हैं
तेरी खामोश
सदायें
जब भी
दस्तक देती हैं
दिल के
बंद दरवाज़े पर
अन्दर सिसकता
दिल और तड़प
जाता है
मगर तोड़
नहीं पाता
अपने बनाये
बाँधों को
ये क्या किया
तूने
किस पत्थर
से दिल
लगा बैठा
चाहे सिसकते
सिसकते
दम तोड़ दें
मगर
कुछ पत्थर
कभी नहीं
पिघलते
मैं शायद
ऐसा ही
पत्थर बन
गयी हूँ
बस तू
इतना कर
मुझे याद
करना छोड़ दे
रविवार विशेष-कविता- "शायद मोहब्बत का भरम टूट जाए"
Reviewed by Rakesh Singh
on
December 04, 2010
Rating:

nice
ReplyDeleteWo kehte hen ki hum unhe bhul jayen,
ReplyDeletewo kyon kehte hen ki hum unhe bhul jaye,
kya wo ab-tak hame bhula paye hen....
dusro ko bhulne ko bolne wale,
phle khud to bhulna shikh le...