रविवार विशेष-कविता-दीपक

दीपक 
माँ,तुमने मुझे दीपक बानाया
बाबूजी के अँधेरे में
ओझल हो रहे सपने को
साकार करने के लिए.
अन्धकार हरने के लिए
मुझे दीपक बनना पड़ा.
नही चाहते हुए भी
जब अँधेरा हुआ
मैं जलने लगा.
समय के हाथों
मुझे जहाँ भी रखा गया
आस-पास का फैला
घना अँधेरा सिमट कर
मेरे चारों ओर घिर गया.
माँ,मैं तो घिर गया हूँ
अन्धकार में.
कोई बताये तो सही
कि स्वयं अँधेरे में घिरना
भला कौन चाहेगा
दीपक बनना कौन चाहेगा?
       __संतोष सिन्हा,मधेपुरा
रविवार विशेष-कविता-दीपक रविवार विशेष-कविता-दीपक Reviewed by Rakesh Singh on November 07, 2010 Rating: 5

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