सोच अपनी अपनी
कवि और डॉक्टर, दो दोस्त;मिले संयोग से,
बतिया रहे थे आपस में,पूरे मनोयोग से
पड़ी नजर कवि की,एक भिखारी पर
थी झुकी कमर और आँखें जमीं पर.
चिंतित होकर कवि ने अपना मुंह खोला,
“यार,देख उसे,वह चबा रहा है सड़ा छोला!
सूखी टांगें,धंसी ऑंखें,पिचका उसका गाल,
देखा नही जाता अब, देश का बदहाल!”
गंभीर होकर डॉक्टर मुफ्त की सलाह दे डाली,
परिचर्चा कर स्वास्थ्य की,नुस्खा लाख टकेवाली.
“उस बेवकूफ को,अच्छे डॉक्टर से दिखवाना चाहिए,
अच्छी दवाई और पौष्टिक आहार लेना चाहिए.
__पी०बिहारी’बेधड़क’
रविवार विशेष-कविता -सोच अपनी अपनी
Reviewed by Rakesh Singh
on
November 07, 2010
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