भारतीय आदर्श समाज के नायक थे डॉ. भीमराव अम्बेडकर: डॉ.जवाहर पासवान

राजकीय अम्बेडकर कल्याण छात्रावास‌ टी.पी. कॉलेज मधेपुरा में डा. भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर छात्रों को संबोधित करते हुए छात्रावास अधीक्षक डॉ जवाहर पासवान ने  कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर मूलतः एक समाज सुधारक एवं समाजिक चिंतक थे. वे हिन्दू समाज द्वारा स्थापित समाजिक व्यवस्था से काफी असंतुष्ट थे और उनमें सुधार की मांग करते थे, ताकि सर्व धर्म सम्भाव पर आधारित समाज की स्थापना की जा सके. अम्बेडकर ने अस्पृश्यता के उन्मूलन और अस्पृश्यों की भौतिक प्रगति के लिए अथक प्रयास किय. वे 1924 से जीवन पर्यन्त अस्पृश्यों का आंदोलन चलाते रहे. उनका दृढ विश्वास था कि अस्पृश्यता के उन्मूलन के बिना देश की प्रगति नहीं हो सकती. अम्बेडकर का मानना था कि अस्पृश्यता का उन्मूलन जाति-व्यवस्था की समाप्ति के साथ जुड़ा हुआ है और जाति व्यवस्था धार्मिक अवधारणा से संबद्ध है. समाजिक सुधारों की प्रमुखता जीवनशैली बना रहा.

समाज सुधार हमेशा डॉ. अम्बेडकर की प्रथम वरीयता रही. उनका विश्वास था कि आर्थिक और राजनीतिक मामले समाजिक न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति के बाद निपटाये जाने चाहिए. अम्बेडकर का विचार था कि अर्थिक विकास सभी सामाजिक समस्याओं का समाधान कर देगा. जातिवादी हिंदुओं की मानसिक दासता की अभिव्यक्ति है. इस प्रकार जातिवाद के बुराई के निवारण के बिना कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं लाया जा सकता. हमारे समाज में क्रांतिकारी बदलाव के लिए समाजिक सुधार पूर्व शर्त है. समाजिक सुधारों में परिवार व्यवस्था में सुधार और धार्मिक सुधार भी शामिल है. परिवार सुधारों में बाल विवाह जैसे कुप्रथाओं की समाप्ति भी शामिल है. अम्बेडकर ने भारतीय समाज में महिलाओं की गिरती स्थिति की कटु आलोचना की. उनका मानना था कि महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार मिलने चाहिए और उन्हें भी शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू धर्म में महिलाओं को सम्पत्ति के अधिकार से वचिंत रखा गया है. हिंदू कोड बिल जो उन्होंने ही तैयार करवाया था उन्होने यह ध्यान रखा कि महिलाओं को भी सम्पत्ति में एक हिस्सा मिलना चाहिए. उन्होंने अस्पृश्यों को संगठित करते समय अस्पृश्य समुदाय की महिलाओं का आगे आने के लिए सदैव आहवान किया कि वे राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में भाग ले. 

डॉ. भीम राव अम्बेडकर जाति प्रथा के कट्टर विरोधी थे. जाति प्रथा के विरोधी होने का मुख्य कारण उनके स्वयं का भुक्त भोगी होना था. वे जाति प्रथा को वर्ण व्यवस्था का आधुनिक और घृणित रूप मानते थे, क्योंकि समयानुसार वर्ण व्यवस्था में जटिलता आ गई और उसने जाति प्रथा का रूप धारण कर लिया था. अब व्यक्ति को उसके कार्यों की अपेक्षा जाति से जाना जाने लगा था. जहां समान जाति की उपजातियों के लोगों में भोजन, सदाचार व्यवसाय की समानता होने से विवाह सम्बन्धों की स्थापना हुई और उसने जाति व्यवस्था को मजबूती एवं स्थायित्व प्रदान किया. डॉ. अम्बेडकर ने जाति प्रथा को मानवीय विरोधी माना क्योंकि यह निम्न वर्गों को घृणित और अमानवीय कार्य करने के लिए प्रेरित करती है. इन्ही आधारों पर डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने जाति प्रथा का विरोध किया.

कार्यक्रम का संचालन छात्र नायक नमन रंजन उर्फ हीरा बाबू ने किया. उक्त अवसर पर छात्र प्रिया रंजन, बाबुल कुमार, सोनू कुमार भारती, प्रभाकर कुमार, मिथिलेश कुमार, शिव शंकर कुमार, रोमित कुमार, रूपेश कुमार, विक्रम कुमार, अनिल कुमार, युवराज कुमार, ध्रुव कुमार, विनोद कुमार, कुंदन कुमार, मंटू कुमार, अभिषेक कुमार, मंटू कुमार, सुमन कुमार, विकास कुमार, शंकर कुमार, सतीश कुमार, देवराज कुमार, अमरेंद्र कुमार, विकास कुमार आदि उपस्थित थे.

भारतीय आदर्श समाज के नायक थे डॉ. भीमराव अम्बेडकर: डॉ.जवाहर पासवान भारतीय आदर्श समाज के नायक थे डॉ. भीमराव अम्बेडकर: डॉ.जवाहर पासवान Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 06, 2022 Rating: 5

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