'जो बातें हमें हमारे बुजुर्गों से सीखने को मिल सकती हैं, वो हमें गूगल पर भी नहीं मिलेगी'

बुजुर्गो की बढ़ती उपेक्षा के दौर में नयी पीढ़ी का दायित्व बहुत ही महत्वपूर्ण है. बुजुर्ग हमारे घर की शोभा होते हैं. बुजुर्ग हमारे घरों में पीपल और तुलसी के पेड़ की भांति शोभायमान होते हैं. 


पीपल के वृक्ष से मेरा तात्पर्य यह है कि पीपल का वृक्ष फल भले ही न देता हो परन्तु छाँव जरुर देता है और तुलसी का पौधा छोटा जरुर होता है परन्तु उसके बिना हर आँगन सूना होता है. हमारे बुजुर्ग हमें ज्यादा आर्थिक सहायता करें या न करें, परन्तु वे हमें बहुत सारे मुसीबत से बाहर निकलने का रास्ता बताते हैं. वो अपने अनुभव से हमें बहुत सी मुसीबतों का सामना करने की हिम्मत प्रदान करते हैं.

हमारी आज की नयी पीढ़ी मे बहुत से युवा बुजुर्गों का सम्मान करने के बदले उनका अपमान कर रहे हैं, उनकी अवहेलना कर रहे हैं, उपेक्षा कर
रहे हैं. हमारे नए दौर की पीढ़ी को अपने ही परिवार के वरिष्ट लोगों के पास बैठने का, उनके साथ बाते करने का, उनसे कुछ सीखने का समय नहीं है. आज की नयी पीढ़ी मोबाइल, इन्टरनेट, गूगल, फेसबुक इत्यादि चीजों को ही अपनी दुनिया मान चुकी है. 

इन्टरनेट तो लोगों को आपस में जोड़ने के लिए लाया गया था. हम जिससे बहुत दूर हैं उन्हें नजदीक लाने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाना था. परन्तु इसके विपरीत हम अपने घर परिवार के लोगों से ही दूर होते चले जा रहे हैं. हकीकत ये है कि एक ही घर में सब एक साथ होते हुए भी अपने-अपने स्मार्ट फोन में व्यस्त रहते हैं. वे फेसबुक के लाइक और कमेंट को ही अपनी दुनिया मान चुके हैं. वे सोचते हैं कि बुजुर्ग उनके लिए कोई मायने नहीं रखते हैं, परन्तु उन्हें ये नहीं पता कि जो बाते हमें हमारे बुजुर्ग से सीखने को मिल सकती है, वो हमें गूगल पर भी नहीं मिलेगी.

आज के इस दौर में कई जगह बुजुर्गों की बुरी तरह अवहेलना की जा रही है. इतना ही नहीं, आज कल के बच्चे अपने ही माता-पिता को उनके ही बनाये घरों से बेघर कर रहे हैं. तभी तो आज हर जगह वृद्धाश्रम की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है. मेरा तो ये मानना है कि अनाथाश्रम और वृद्धाश्रम को एक कर देना चाहिए, ताकि बूढ़ों को उन्हें कभी न छोड़ने वाले बच्चे और बच्चों को उनके माता-पिता या अभिभावक का प्यार मिल जाये.

बुजुर्गों की सेवा तथा उनका सम्मान करना हमारी संस्कृति है और आज की पीढ़ी अपनी संस्कृति ही भूलती जा रही है. एक माता-पिता अपनी जवानी में अपने चार-चार बच्चों को कष्ट काटकर भी पाल लेते हैं, परन्तु इनके बुढ़ापे में वो चार बच्चे भी जवान होकर अपने माँ-बाप को नहीं पाल पाते. शायद वो भूल जाते हैं कि जितनी जरुरत हमें बचपन में उनकी होती है, उतनी ही जरुरत उन्हें बुढ़ापे में हमारी होती है. हमारे बुजुर्ग हमसे चाहते ही क्या हैं? दो वक्त की रोटी और सम्मान. परन्तु हमारी आज की पीढ़ी इतनी मतलबी हो गई है कि वे इतना तक उन्हें नहीं दे पा रही है. हमारे समाज में बुजुर्गो की उपेक्षा बहुत ही दु:खद है. हमें हमारी जिम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए. हमें बुजुर्गों को सम्मान देना चाहिए. जिस घर में बुजुर्गों का सम्मान होता है वह घर स्वर्ग बन जाता है.

अत: ये आवश्यक है कि हमें बुजुर्गो की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि उनकी अपेक्षाओं पर खड़ा उतरने की कोशिश करनी चाहिए.

प्रिया चौधरी, मधेपुरा 

(प्रिया को इस आलेख के लिए हिन्दी दिवस पर समिधा ग्रुप और मधेपुरा टाइम्स द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता के लिए प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है.)
'जो बातें हमें हमारे बुजुर्गों से सीखने को मिल सकती हैं, वो हमें गूगल पर भी नहीं मिलेगी' 'जो बातें हमें हमारे बुजुर्गों से सीखने को मिल सकती हैं, वो हमें गूगल पर भी नहीं मिलेगी' Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 03, 2018 Rating: 5

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