'जेडीयू में प्रशांत किशोर के क्या हैं मायने, जिम्मेदारी प्रोफेशनल नहीं इमोशनल'

समर 2019 की आहट राजनीतिक गलियारे में महसूस होने लगी है तो सियासी पारा भी गर्म हो चला है। एक तरफ एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर तूफ़ान उठ खड़ा हुआ है तो दूसरी तरफ महागठबंधन में भी अंदरखाने हलचल मची हुई है। 


इस सरगर्मी के बीच चुनावी दुनिया के रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) की जेडीयू में फुलटाइम इंट्री ने बिहार की सियासी सरगर्मी को और भी बढ़ा दिया है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि पीके की अब जेडीयू में किस तरह की भूमिका होगी औरबिहार में बहार के साथ साथ एक बार फिर नीतीशे कुमार को स्थापित कर पाने में किस हद तक सफल हो पाते हैं।

अपनी खास रणनीति, नारे और स्लोगन के बदौलत चुनावी गुरु के रूप में स्थापित हो चुके प्रशांत किशोर के विरोधी भी उनके चुनावी कौशल प्रबंधन के मुरीद माने जाते हैं। पहले बीजेपी और बाद में जेडीयू के साथ जुड़कर वे अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवा चुके हैं । लेकिन, वर्ष 2018 के पीके पूर्व के पीके से इस मायने में अलग हैं कि वे पहले केवल चुनावी रणनीतिकार थे और अब वे जेडीयू के कार्यकर्ता हैं और उनकी जिम्मेदारी प्रोफेशनल नहीं इमोशनल होगी।ऐसे में राजनेता के साथ रणनीतिकार की भूमिका चुनौतीपूर्ण होगी।

प्रशांत किशोर की जिस प्रकार जेडीयू में भव्य इंट्री हुई है उसने सबो को चौंकाया है। जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार को पीके के कौशल प्रबंधन पर पूरा पूरा भरोसा है, लिहाज़ा उन्हें तबज्जो दी जा रही है। सीट शेयरिंग को लेकर हाल में जब नीतीश कुमार दिल्ली में थे तो पीके की अहम उपस्थिति उनकी अहमियत की कहानी ही बया कर रही थी । इतना ही नही आगे की बातचीत के लिए भी नीतीश कुमार ने पीके को अघोषित रूप से जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी को और गंठबंधन के अन्य साथियों को संकेत दे दिया कि पीके अब पार्टी में नंबर 2 होंगे । हालांकि प्रशांत किशोर के इस विराट रूप से नीतीश कुमार के कुछ करीबी खुद को असहज महसूस कर रहे हैं, लेकिन यह वक्त की जरूरत है और नीतीश की भी यही इक्षा है, लिहाजा आल इज वेल है।

 प्रशांत किशोर की राह पूरी तरह निष्कंटक हैं, ऐसा भी नहीं है। एक तरफ जेडीयू को लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीट दिलाना पीके के लिए चुनौती है तो वर्ष 2015 की तरह वर्ष 2019 के चुनावी मैदान में जीत दिलाना उनके रणनीति का अहम हिस्सा होगा। दूसरी ओर सुशासन बाबू की छवि को बरकरार रखते हुए, बिहार में बड़े भाई की भूमिका में बने रहना और वोट बैंक में विस्तार करना नीतीश कुमार के लिए चुनौती है । साथ ही संगठन के स्तर पर नई रणनीति और चुनावी प्रबंधन के नए कौशल की भी पार्टी जरूरत महसूस कर रही थी । 

ऐसे में इन जिम्मेदारियों के एक साथ निर्वहन की उम्मीद पार्ट टाइम पीके से नहीं, बल्कि फुलटाइम पीके से ही कि जा सकती थी । अब जबकि प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के साथ हैं तो बिहार की राजनीति में क्या गुल खिलता है और 2019 के कुरुक्षेत्र में सारथी पीके जेडीयू के रथ को कितनी दूर ले जाते हैं, यह आने वाला वक्त बताएगा ।



पंकज कुमार भारतीय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)
'जेडीयू में प्रशांत किशोर के क्या हैं मायने, जिम्मेदारी प्रोफेशनल नहीं इमोशनल' 'जेडीयू में प्रशांत किशोर के क्या हैं मायने, जिम्मेदारी प्रोफेशनल नहीं इमोशनल' Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 03, 2018 Rating: 5

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