खत जो लिखा मैंने इंसानियत के पते पर
डाकिया ही चल बसा शहर ढूंढते ढूंढते ।
लेकिन आज उसका पता भी मिल गया और वह दुर्लभ शहर भी अपना ही निकला.
ऐसे मुक्कमल शहर का दर्शन करना हो तो हमारे दयार में आईए । हम आपको मिलाएंगे इंसानियत की एक ऐसी प्रतिमूर्ति से जो अपनी जिंदगी से बेपरवाह -कसमें , वादे , प्यार, वफा, उम्मीदें, हसरतें और चाहतें सबकुछ भूलकर फर्ज के रास्ते पर कलंदर बना फिर रहा है। उस प्रतिमूर्ति का नाम है सुमन कुमार सिंह । श्री सिंह बिहार के मधेपुरा जिलान्तर्गत चौसा के थानाध्यक्ष हैं। आवाम के सुख -चैन और समाज में शांति के लिए उन्हें न तो अपनी चिंता है न ही परिवार की । उनके चाहने वाले जब उन्हें परिवार की याद दिलाते हैं , टोकते हैं तो वे बेपरवाही से सिर्फ इतना कहते हैं - " परिवार से बड़ा देश होता है । देश की सेवा करना मेरा पहला कर्तव्य है। जनता के आशीर्वाद से मेरे परिवार का भला ही होगा ।"
यह महज जुमला नहीं हैं। इसे फर्ज के प्रति अटूट आस्था कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । यह आस्था तपस्या में तब बदल जाती है जब श्री सिंह अपने थाना क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए दियारा की खाक छान रहे होते हैं जबकि उनकी पत्नी अलका सिंह पटना में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही होती हैं । इसे तपस्या नहीं तो और क्या कहेंगे?
सनद रहे कि गत दिनों जिला के फुलौत ओपी में ग्रामीणों ने हमला कर दिया था । स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक के द्वारा विधिवत् छुट्टी मिलने के बावजूद श्री सुमन पत्नी से मिलने नहीं गए । ऊधर पटना स्थित रूबन हास्पिटल के ऑपरेशन थियेटर में पत्नी की सूनी आंखे इंतजार की हद पार कर गई, ईधर पति आवाम की सुख - शांति के लिए दियारा की खाक छानता रह गया ।
यों तो कहा गया है - जिन्दगी दो लफ्जों में यूं अर्ज है आधा कर्ज है तो आधा फर्ज है । परंतु श्री सुमन ने अपनी जिंदगी को कर्ज के वशीभूत कभी नहीं होने दिया । उनकी पूरी की पूरी जिंदगी ही फर्ज के लिए समर्पित है । ऐसा भी नहीं है उनके फर्ज के रास्ते में कभी उनका परिवार बाधक बना हो । उनका परिवार खासकर उनकी पत्नी कस्तूरबा की तरह उन्हें सहयोग प्रदान करती रही हैं । जिसकी बदौलत वे अपने फर्ज को तपस्या बना रखे हैं ।
सुमन कुमार सिंह का यह पहला इन्शानियत रूप नहीं है. आप ने पहले भी मधेपुरा टाइम्स पर पढ़ा होगा कि एक गुड़िया कुमारी को चौसा थाना अंतर्गत खलीफा टोला में गला घोट कर फेक दिया गया था. लेकिन भगवान की लीला थी कि उसके शरीर में कुछ जान बाकी थी. उस समय भी सुमन कुमार सिंह ने मधेपुरा में डॉक्टर से कहा था कि किसी तरह इस लड़की की जान बचा लें, जितना पैसा लगेगा हम देंगे, अपना ए टी एम लेकर आए हैं।
जाहिर है ऐसे ही कर्तव्यनिष्ठ पदाधिकारी के दम पर जहाँ विधि-व्यवस्था कायम रखने में प्रशासन कारगर होती है, वहीँ समाज में इंसानियत जिन्दा है.
(रिपोर्ट: याहया सिद्दीकी)
डाकिया ही चल बसा शहर ढूंढते ढूंढते ।
लेकिन आज उसका पता भी मिल गया और वह दुर्लभ शहर भी अपना ही निकला.
ऐसे मुक्कमल शहर का दर्शन करना हो तो हमारे दयार में आईए । हम आपको मिलाएंगे इंसानियत की एक ऐसी प्रतिमूर्ति से जो अपनी जिंदगी से बेपरवाह -कसमें , वादे , प्यार, वफा, उम्मीदें, हसरतें और चाहतें सबकुछ भूलकर फर्ज के रास्ते पर कलंदर बना फिर रहा है। उस प्रतिमूर्ति का नाम है सुमन कुमार सिंह । श्री सिंह बिहार के मधेपुरा जिलान्तर्गत चौसा के थानाध्यक्ष हैं। आवाम के सुख -चैन और समाज में शांति के लिए उन्हें न तो अपनी चिंता है न ही परिवार की । उनके चाहने वाले जब उन्हें परिवार की याद दिलाते हैं , टोकते हैं तो वे बेपरवाही से सिर्फ इतना कहते हैं - " परिवार से बड़ा देश होता है । देश की सेवा करना मेरा पहला कर्तव्य है। जनता के आशीर्वाद से मेरे परिवार का भला ही होगा ।"
यह महज जुमला नहीं हैं। इसे फर्ज के प्रति अटूट आस्था कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । यह आस्था तपस्या में तब बदल जाती है जब श्री सिंह अपने थाना क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए दियारा की खाक छान रहे होते हैं जबकि उनकी पत्नी अलका सिंह पटना में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही होती हैं । इसे तपस्या नहीं तो और क्या कहेंगे?
सनद रहे कि गत दिनों जिला के फुलौत ओपी में ग्रामीणों ने हमला कर दिया था । स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक के द्वारा विधिवत् छुट्टी मिलने के बावजूद श्री सुमन पत्नी से मिलने नहीं गए । ऊधर पटना स्थित रूबन हास्पिटल के ऑपरेशन थियेटर में पत्नी की सूनी आंखे इंतजार की हद पार कर गई, ईधर पति आवाम की सुख - शांति के लिए दियारा की खाक छानता रह गया ।
यों तो कहा गया है - जिन्दगी दो लफ्जों में यूं अर्ज है आधा कर्ज है तो आधा फर्ज है । परंतु श्री सुमन ने अपनी जिंदगी को कर्ज के वशीभूत कभी नहीं होने दिया । उनकी पूरी की पूरी जिंदगी ही फर्ज के लिए समर्पित है । ऐसा भी नहीं है उनके फर्ज के रास्ते में कभी उनका परिवार बाधक बना हो । उनका परिवार खासकर उनकी पत्नी कस्तूरबा की तरह उन्हें सहयोग प्रदान करती रही हैं । जिसकी बदौलत वे अपने फर्ज को तपस्या बना रखे हैं ।
सुमन कुमार सिंह का यह पहला इन्शानियत रूप नहीं है. आप ने पहले भी मधेपुरा टाइम्स पर पढ़ा होगा कि एक गुड़िया कुमारी को चौसा थाना अंतर्गत खलीफा टोला में गला घोट कर फेक दिया गया था. लेकिन भगवान की लीला थी कि उसके शरीर में कुछ जान बाकी थी. उस समय भी सुमन कुमार सिंह ने मधेपुरा में डॉक्टर से कहा था कि किसी तरह इस लड़की की जान बचा लें, जितना पैसा लगेगा हम देंगे, अपना ए टी एम लेकर आए हैं।
जाहिर है ऐसे ही कर्तव्यनिष्ठ पदाधिकारी के दम पर जहाँ विधि-व्यवस्था कायम रखने में प्रशासन कारगर होती है, वहीँ समाज में इंसानियत जिन्दा है.
(रिपोर्ट: याहया सिद्दीकी)
मिसाल: पत्नी तड़प रही अस्पताल में, पुलिस अधिकारी पति ने कर्त्तव्य को दी अहमियत
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 28, 2017
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